माँ आओ ! आओ माँ !
हुआ भोर का शंखनाद !
रश्मि रथ पर हो सवार
भव का तम हरने आओ !
दूर करो माँ यह अंधकार
जो लील रहा अस्तित्व मेरा !
सूझता नहीं मुझे पथ मेरा !
इस जग में है ही कौन मेरा
जिसको पुकार कर बुलाऊँ ?
अंतर का हाहाकार सुनाऊँ ?
अपनी कृपा दृष्टि का दीप जला
मुझे आगे का मार्ग दिखाओ ।
मेरे मन के महिषासुर बलवान
दैन्य, दौर्बल्य, भय, संताप,
इन दुष्टों को मार भगाओ !
अपने नयनों के प्रखर तेज से
मुझमें साहस प्रज्ज्वलित करो माँ !
भावशून्यता के भंवर से उबारो !
जड़ तिमिर भेद मनोबल दो !
चरण धूलि तुम्हारी पा जाऊँ माँ !
ह्रदय आलोकित कर दे मेरा माँ
तुम्हारे पावन रूप की ज्योत्सना ।
************************************माँ की छवि अंतरजाल से साभार
कुछ और पन्ने
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माँ की स्तुति मन को भावनाओं से भर गयी।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ०४ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी, माँ का स्वरूप ही ढाँढ़स बँधाता है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.. गहन अनुभूतियों से प्रेरित इस अंक की भूमिका और रचनाओं के समकक्ष स्थान देने के लिए। शुभ नवरात्रि।
हटाएंमाँ के विभिन्न स्वरुपों की सुंदर प्रस्तुति. जय माता की
जवाब देंहटाएंआपकी अनुभूति को नमन जो आपने अंतरव्यथा के परे माँ के विभिन्न स्वरूपों का दर्शन किया। शुभ नवरात्रि।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार। शुभ नवरात्रि।
हटाएंमाँ आओ ! आओ माँ !
जवाब देंहटाएंहुआ भोर का शंखनाद !
रश्मि रथ पर हो सवार
भव का तम हरने आओ !
हृदय में शीतलता भरते अद्भुत भाव.., भक्ति भाव से ओतप्रोत भावभीनी स्तुति ।अति सुन्दर संग्रहणीय सृजन नुपूरं जी ! सादर सस्नेह वन्दे !
आपकी सहृदय एवं संवेदनशील सराहना का हृदय तल से आभार। नवरात्रि शुभ हो। मंगल हो नवाचार।
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