जय जय जगन्नाथ !
महाप्रभु के आराध्य !
तुम्हारे नेत्र विशाल
आकाश का विस्तार
जगत जिनमें समाहित,
पाए कृपादृष्टि अनुराग
बहन सुभद्रा समान ।
संग बलभद्र शोभायमान ।
रथारुढ़ हुए भगवान ..
प्रस्थान गंतव्य की ओर ।
भक्त आनंद विभोर !
भुवन रथ पर आरूढ़
कृपादृष्टि से सिंचित
कर देना भगवन
दृष्टि मेरी पावन !
देख सकूं जन-जन..
जगत में जगन्नाथ।
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दर्शन अंतर्जाल से आभार सहित
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार ९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर प्रार्थना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर भावपूर्ण भक्तिमय रचना
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