हिंदी सह्रदय सहचरी ! बहन मुँहबोली !
स्नेह पगी अभिव्यक्ति इसकी रसभरी !
बिना सीखे भी जो बोलनी आ जाती !
बोलते-सुनते ही हिंदी राजभाषा बनी !
वैज्ञानिक लिपि देवनागरी,मानते सभी,
जैसी बोली जाती, वैसी लिखी जाती।
समृद्ध साहित्य की बाँध गठरी चल दी,
अब दुनिया भर में करती चहलकदमी ।
अपनेपन की भाषा ठहरी अपनी हिन्दी
अपने रास्ते ख़ुद बनाती भाषा एक नदी।
वाह, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. पढ़ते रहिएगा.
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 17 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंधन्यवाद, यशोदा सखी. किसी कारणवश आपकी टिप्पणी एक-दो बार से ईमेल पर नहीं आ रही. क्या आपको भी ब्लॉग में कोई समस्या नज़र आती है ?
हटाएंबहुत सुंदर भाव प्रवण सृजन, हिन्दी को समुच्चय आदर देती कविता।
जवाब देंहटाएंकुसुम सखी, नमस्ते. आपकी सराहना सर-आँखों पर. हर वर्ष इस तरह के विषयों पर वही लकीर पीटने के बजाय कुछ अनकहा-सा कहने की कोशिश की.
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहरीश जी, धन्यवाद. आपका नमस्ते पर स्वागत है. पढ़ते रहिएगा.
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, ओंकार जी.
हटाएंनमस्ते आदरणीया बहुत सुंदर रचना,
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