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गुरुवार, 4 मई 2023

वरदान में वरदहस्त

न आकाश में न धरती पर
न अस्त्र से न शस्त्र से 
न दिन में न रात में 
न घर में न घर से बाहर
न मनुष्य,न पशु,
न देव, न दैत्य
कोई नहीं मार सकता
आज भी हिरण्यकशिपु को,
जो हमारे भीतर घात लगाकर 
बैठा रहता है अकङ कर ।
इस निरंकुश अहंकार पर
ठप्पा जो लगा है, अमर तपस्वी का ।
पर आपकी कृपा से भगवन
प्रहलाद भी जनम लेता है
उसी सोच के धरातल पर ।
भक्त फ्रहलाद न दीन हैं, न असफल ।
विनम्र सत्कर्म का धारे कवच ।
मेरी चेतना में सर्वदा रहे उपस्थित 
भक्त प्रह्लाद की भक्ति अविचल ।
जब जब अनर्थ करने के लिए 
उद्यम करे.. हिरण्यकशिपु ललकारे,
तब तुम जो सर्वत्र विद्यमान हो,
जङ खंब से प्रगट होना !
चेतना स्वरूप ..
नरसिंह रूप धर कर ।

न आकाश में न धरती पर
न अस्त्र से न शस्त्र से
न दिन में न रात में 
न घर में न घर से बाहर
न मनुष्य,न पशु,
न देव, न दैत्य,
मेरी चेतना से प्रस्फुटित होकर
नरसिंह भगवान ! लीजिए अवतार !
विराजिये चौखट पर मन की
मिटा दीजिए द्वंद, कायरता,
भ्रमजाल, अभिमान, भय का, 
अदम्य तृष्णा का नख छेदन कर
रक्षा कीजिए अभय दीजिए 
सदाचार में दृढ़ अपने अनन्य भक्त 
निर्मल मति प्रहलाद को दुलार कर
अंक में भर लीजिए, और दीजिए 
अक्षय वरदान में वरदहस्त ।





10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. जब कोई नहीं पढ़ता, तब आप अवश्य पढ़ लेते हैं । पढ़ कर दो शब्द कह भी देते हैं । आपका अनंत आभार । ओंकार जी, नमस्कार ।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 07 मई 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. कल क अंक देखिए

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०७-०५-२०२३) को 'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक -४६६१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना !
    अपने अन्दर के प्रहलाद को जगा कर, हम ख़ुद ही नरसिंह बन कर, अपने बाहर के और अपने बाहर के, हिरण्यकशिपु का संहार कर सकते हैं.

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  6. जब अपराध विकराल रुप ले लेता है तो ... अंत तो निश्चित होता ... असंभव में ही सम्भव निहित होता है ..

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  7. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
    thanks for sharing

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