मंगल सुवासित प्रभात ।
पुलकित हुआ पात पात ।
फूलों का सुगंधित हास ।
पंछियों का सुरीला आलाप ।
समय जल सम प्रवाहित
लहर लहर पल पल निरंतर ।
चारों दिशाएं उठीं जाग
सस्वर करतीं अभिवादन ।
योग, कर्म, कौशल का बल
अथक श्रम से निरंतर सिंचन ,
आकाश में दैदीप्यमान उदयन
जगत में रोपता धूप उदार मन ।
मंगलमय स्वर्णिम हो जन-जीवन
प्रणति निवेदन अक्षय हो चंदन वंदन ।
सुंदर सुगंधित वंदन!
जवाब देंहटाएंअनाम पाठक का धन्यवाद. नमस्ते.
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार, आदरणीय. नमस्ते.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी. आदित्य के आलोक से सराबोर चर्चा में शामिल करने के लिए.
हटाएंमंगलमय स्वर्णिम हो जन-जीवन
जवाब देंहटाएंप्रणति निवेदन अक्षय हो चंदन वंदन ।
शुभेच्छा सम्पन्न बहुत सुन्दर सृजन ।
सस्नेह धन्यवाद. आपकी सराहना सर आँखों पर. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमंगलमय स्वर्णिम हो जन-जीवन
जवाब देंहटाएंप्रणति निवेदन अक्षय हो चंदन वंदन ।
अक्षय ही हों ऐसी मंगलकामनाएं ।
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!!
बहुत सुंदर रचना
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