जिज्जी आज अगर आप होतीं
तो सच्ची कितना हँसती..
राम जाने !
जब आपको हम बताते
आज डाक दिवस है ।
हँसी से लोटपोट हो कर
धौल जमा कर कहतीं ..
चिट्ठी क्या कोई एक दिन
लिखे जाने की चीज़ है !
आख़िर रोज़ आता है डाकिया
लादे बस्ता भर कर चिट्ठियां !
जैसे सूरज बेनागा उदय होता है ।
ठीक उसी तरह ट्रिन-ट्रिन करता
अक्सर सायकिल पर सवार
या पैदल घर-घर फेरी लगाता है,
रोज़ आता है डाकिया ।
उसे इस बात का भान है,
किसी को इंतज़ार है
ज़रूरी चिट्ठी, मनी आर्डर का ।
किसी ज़माने में मेघदूत आते थे,
संदेसा लाते जवाब पहुँचाते ।
आज का मेघदूत है डाकिया ।
कोई एक दिन लिखता है भला !
चिट्ठी तो भावावेग की बाढ़ है ।
कभी किसी की दरकार है ।
प्यार भरी मनुहार है,सरोकार है ।
अकलेपन का अचूक उपचार है ।
अनुपस्थित से परस्पर संवाद है ।
ये सब क्या एक दिन की बात है ?
वाह रे ज़माने ! अजब रिवाज़ है ।
रोज़ आता है डाकिया बाँटता हुआ
चिट्ठियों में उम्मीद की अशर्फ़ियां ।
अपने बस्ते में लादे अनगिनत कहानियाँ
सूत्रधार बन कर रोज़ आता है डाकिया ।
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, शास्त्री जी ।
हटाएंलेकिन अब तो चिट्ठियों का रिवाज़ भी खत्म हो गया ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ।
शुक्रिया, संगीता जी ।
हटाएंरिवाज़ ख़त्म हो गया पर चाह कभी गई नहीं ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 13 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा सखी, पाँच लिंकों में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
हटाएंडाक दिवस पर बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति नूपुरं जी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंकामिनी जी, धन्यवाद । चिट्ठियों में जो आत्मीयता होती है, उसकी पूर्ति डिजिटल पत्र कभी नहीं कर सकते ।
हटाएंहमारी पीढ़ी डाकिया का इंतजार की है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जी, विभा जी । आज भी डाकिये को देख कर लगता है कि शायद इसके पास हमारी चिट्ठी हो । : )
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ।
हटाएंवाह बहुत सुंदर चिट्ठियों का अपना अलग ही आनंद था आजकल तो वो आनंद ढूँढे से भी नहीं मिलता
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों में आना हुआ, अभिलाषा जी । अच्छा लगा । अब भी चिट्ठियां लिखी जाती हैं, सहेजी जाती हैं । अब भी रक्षाबंधन से पहले लंबी कतार में लोग खङे दिखाई देते हैं । बस नहीं है तो वो रिश्ता जो अपनेपन का था ।
हटाएंबहुत शुक्रिया ।
बहुत ही सुंदर सार्थक रचना ।चिट्ठी का मोह और अपनापन इस जन्म तो नही छूट सकता । अभी भी डाकिया आता है, पर जरूरी पत्रों को लेकर । पर आता है ।
जवाब देंहटाएंआज भी चिठ्ठियों के लिए मन तरसता
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना