बापू से और शास्त्री जी से
हमने पूछे अनगिनत सवाल ।
मंडवा कर चित्र आदमकद
सादर दिया खूंटी पर टांग ।
प्रतिमा भव्य गढ़वा कर
सङक किनारे कर अनावरण
बाकायदा किया दरकिनार ।
निबंध लिखो बढ़िया-सा बच्चों !
नंबर पाओ शानदार !
दिवस मनाओ ज़ोर-शोर से !
करो बङी-सी सेमिनार !
और भूल जाओ उसके बाद ।
महापुरुषों की विचारधारा
ग़लती से भी बरखुरदार !
दिल पर मत ले लेना !
हो जाएगा सत्यानाश !
आदर्श मानवों को देखो
ताक पे रखा जाता है !
उनके जीवन से सीख कर
कौन जीवन जीता है !
ठोक-ठोक कर समझाया !
विसंगतियों का भय दिखाया !
पर मान गए बापू तुमको !
और शास्त्री जी के क़द को !
मुट्ठी भर ही होंगे ऐसे
एकनिष्ठ एकलव्य सरीखे
जो चले तुम्हारे रास्ते ,
और अपने स्वाध्याय के
बीज राह में बोते चले ।
ये मौन धरे कर्मठ योगी
भारत माँ के चरणों में
अर्पित कर अपनी मेधा
अखंड यज्ञ करते रहे ।
ये करते नहीं नुक्ताचीनी ।
जो सीख सके जो समझ सके
अपने जीवन में पिरोते रहे ।
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चित्र अंतरजाल के सौजन्य से
सत्य वचन।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद । नमस्ते जोशी जी ।
हटाएंबहुत सटीक।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद । बहुत सोचा । यही सूझा ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत प्यारे शीर्षक वाली चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार, अनीता जी ।
हटाएंबापू और शास्त्री जी को बहुत सुन्दर श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंसविनय धन्यवाद । इन दोनों का वरदहस्त हर भारत वासी पर रहता है ।
हटाएंसही कहा है। बस नाम भर ही महानता रह गई है आज। अनुसरण कौन करता है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, अमृता जी । अनुसरण करें न करें, जी तो कचोटता होगा, जब ग़लत कदम उठता है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, ओंकार जी ।
हटाएंसुंदर काव्य पंक्तियां
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ, मनोज जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सटीक रचना ।
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