कल हो सकता है,
मैं रहूँ ना रहूँ,
पर हमेशा रहेंगे
तुम्हारी स्मृति में
वे पेङ-पौधे हरे-भरे
जो हमने साथ लगाए..
वह नदी, जल जिसका
कभी नहीं ठहरता,
जिसकी धारा में हमने
दोनों में दीप धर करबद्ध
अनंत को संदेश पठाए..
यह नील नभ का विस्तार
जिसमें अंतरतम के भाव
बादल बन छाए, गहराए
और बरसे निर्द्वन्द्व मूसलाधार..
वह बंजारन पवन सघन वन
झूमती, कभी सीटी बजाती
स्निग्ध बयार माथा सहलाती..
चूल्हे की आंच पर सिंकती
कच्ची-पक्की भावनाएं..
ये सब रहेंगे तुम्हारे साथ ।
मुङ कर देखो यदि अकस्मात
संभावनाओं को देखना,
असफलताओं को नहीं ।
अनुपस्थिति से
विचलित मत होना ।
कल हो सकता है,
मैं रहूँ ना रहूँ,
पर हमेशा रहेंगे
तुम्हारी स्मृति में
वे पेङ-पौधे हरे-भरे
जो हमने साथ लगाए..
उनकी घनी छाँव तले
बैठना और संकल्प लेना..
धरा को बनाना हरा-भरा ।
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चित्र - हस्तकला प्रदर्शिनियों में उड़ीसा के ताल पात्र पर बने चित्रों के स्टाल पर अवश्य गए होंगे ।
वहीं से ली था यह जीवंत कलाकृति । प्रकृति से विशेषकर वृक्ष से जुड़े जीवन की सहज सरल अनुकृति । अनाम कलाकार का सादर अभिनंदन । अनंत आभार ।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-06-2022) को चर्चा मंच "निम्बौरी अब आयीं है नीम पर" (चर्चा अंक- 4455) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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धन्यवाद, शास्त्री जी ।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आलोक जी ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंचूल्हे की आंच पर सिंकती
कच्ची-पक्की भावनाएं..
ये सब रहेंगे तुम्हारे साथ ।बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
सराहनीय सृजन।
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