बहुत दिनों बाद तक
सींचते-सींचते
मिट्टी को नरम रखते
आतुर नयन
ढूँढते हैं
जीवन का कोई चिन्ह ।
और तब
जब एक दिन अचानक
नम मिट्टी में
एक अंकुर
फूटते देख
जो पुलक हृदय में
हिलोर लेती है ..
उल्लास का सरोवर
बन जाती है ।
उस सरोवर को कभी
सूखने मत देना ।
उस निर्द्वंद पुलक को
भाव सरोवर में,
अनगिनत कमल बन
खिलने देना ।
सींचते-सींचते
मिट्टी को नरम रखते
आतुर नयन
ढूँढते हैं
जीवन का कोई चिन्ह ।
और तब
जब एक दिन अचानक
नम मिट्टी में
एक अंकुर
फूटते देख
जो पुलक हृदय में
हिलोर लेती है ..
उल्लास का सरोवर
बन जाती है ।
उस सरोवर को कभी
सूखने मत देना ।
उस निर्द्वंद पुलक को
भाव सरोवर में,
अनगिनत कमल बन
खिलने देना ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-07-2019) को "कॉन्वेंट का सच" (चर्चा अंक- 3409)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी ।
हटाएंसुप्रभातम ।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएंआपने कहा तो मेहंदी की तरह रच गई रचना : )
वाह
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन
Waah bohot hi sakaratmak aur prernadayi rachna
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव|
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंA very pleasant poem with the secret of happiness
जवाब देंहटाएं