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बुधवार, 20 मार्च 2019

गौरैया खूब चहको तुम




नन्ही गौरैया आओ तुम ।
अपना घर बसाओ तुम ।

मेरे छोटे-से घर की
छत का कोना, खिड़की,
बालकनी, दुछत्ती, अहाता,
सब बाट जोहते हैं तुम्हारी ।

यहाँ घोंसला बनाओ ।
दिन भर दाना चुगो ।
प्यास लगे तो पानी पियो ।
ये सब यहाँ मिलेगा ।
और प्यार मिलेगा ।
ज़्यादा कुछ नहीं,
देने को
हमारे पास भी ।
तुम्हें भी तो
चाहिए बस इतना ही ।

तुम्हारा रहना आसपास
होता है शुभ ।
तुम चहचहाती हो जब,
चहकने लगता है जीवन ।




गौरैया के घर की चित्रकारी : श्रीमती रेखा शांडिल्य 

14 टिप्‍पणियां:

  1. मंगला समय एक पद गाया जाता है थकुर जी के सन्मुख, "चिरिया चुहचुहानी,सुन मृदु यह वानी,उठे मनमोहन" और भोग अरोगाते समय पद में वर्णन आता है, "आओ चिरय्या,आओ ठुमरय्या"! नंद भवन में यशोदा जी ठाकुर जी को चिड़िया,गौरैय्या के बहाने बुला रही हैं! आपकी गौरैय्या ने वही याद दिला दिया।

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    1. अच्छा किया आपने इतने मधुर प्रसंग के बारे में बता दिया.अब जब जब नन्ही चिरैया आएगी, ठाकुरजी का स्मरण कराएगी. अहो भाग्य, हमारी किरायेदार गौरैया ने आपको कन्हैया की याद दिला दी.

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  2. वाह ! बहुत ही सुंदर भावों से सराबोर रचना

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    1. धन्यवाद रवीन्द्र जी. किसी का आबोदाना बसते देख मन भावुक हो ही जाता है. और गौरैया तो मानो सहेली है.आसपास रहती है तो मन प्रसन्न रहता है.

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  3. उत्तर
    1. अभिलाषा जी, बहुत आभार.
      अपने आसपास चहकती गौरैया अकेलापन महसूस नहीं होने देती.
      बहुत ज़रूरी है उसका फलना-फूलना.

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. कोमल सरस सुंदर नूपुर जी बधाई समय परक विषय।
    अप्रतिम

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    1. आनंदित हुआ मन ! सुन कर मन की वीणा !
      भाग-दौड़ से थके-हारे मन के लिए ईश्वर का वरदान है, गौरैया के आने-जाने की चहल-पहल. अकेलापन और थकान हर लेता है इनका चहकना.साथ बना रहे.

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना.....गौरया सी मनभावनी...ऐसा प्यार मिले जो इसे तो शायद न हो ये लुप्त...यहीं रहे गुनगुनाती हमारे लिए।

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    1. इंशाल्लाह ! सुधा जी. सच मानिये, बहुत देर तक दिखाई ना दे गौरैया तो बहुत सूना सूना लगने लगता है घर. याद सताने लगती है. एक अनाम रिश्ता है, जो हमारी जिंदगी में चहकता है, धड़कन की तरह.

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