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रविवार, 17 मार्च 2019

सही की बही




सही में यार !
बहुत मुश्किल है !
सही क्या ?
ग़लत क्या ?
इस सब की विवेचना ।
कोई कितना करे ?
और कब तक करे ?
किंतु परंतु का कोई
अंतिम छोर है क्या ?
निष्कर्ष कैसे निकलेगा ?

रेगिस्तान में जल दिखना
तो छलना है ।
मृगतृष्णा है ।

क्षितिज जब तक
दूर है,
सबको मंज़ूर है ।
नज़र का नूर है ।
मगर पास गए अगर
तो कुछ भी नहीं है ।
भुलावा है ।
मनमोहक है पर
मात्र दृष्टिकोण है ।

अब बताइए ।
क्या किया जाए ?
सही को कहाँ ढूंढा जाए ?

सही तो भई
परिस्थितियों की बही पर
समय के दस्तख़त हैं ।
समय के साथ
लिखा-पढ़ी करने पर
बदल भी सकते हैं ।

फिर एक दिन ऐसे ही
बैठे-बैठे अनायास ही
सब समझ में आ गया ।

असल में काम सही है वही
जिसका मंसूबा नेक हो ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. Waaow! ये कविता नही गीत है! बोहोत सून्दर लिखा है

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    1. जिनके मन में गीत है,
      वो कविता को गीत समझते हैं.
      ये ऐसे रंग हैं,
      जो कभी छूटते नहीं.

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. होली के रुपहले रंगों जैसी सुन्दर आपकी भावना.
      आभार मीना जी.

      हटाएं
  3. वाह !!! बहुत खूब ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्ते कामिनी जी.
      खूब फबें आप पर होली के रंग !
      होली की राम राम ! आभार !

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-03-2019) को "मन के मृदु उद्गार" (चर्चा अंक-3279) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. धन्यवाद शास्त्रीजी.
      मन के मृदु उद्गार जानने को मन उत्सुक है.

      हटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने पाई सुन्दरता
      सार्थक हुई रचना.

      धन्यवाद. होली मुबारक !

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. अनीता जी, होली की राम राम !
      सुन्दरता कभी फीकी ना पड़े !

      हटाएं
  7. वाह बहुत सुन्दर नूपुरम जी।
    होली की रंगारंग हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    उत्तर
    1. होली के रंग जी उठें, मन की वीणा की तान सुन कर.
      रंग छलकते रहें. वीणा बजती रहे.
      हार्दिक आभार.
      नमस्कार.

      हटाएं
  8. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. सच और झूठ को अपने आईने से देखती हुई रचना, तथ्य परक व सम्यक् लगी। शुभकामनाएं ।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद.
      किसी का सही भी किसी के लिए ग़लत होते देखा.
      सोचा क्यूँ ना अपने ही मन को जाए टटोला.

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  10. आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 20 मार्च 2019 को साझा की गई है..
    http://halchalwith5links.blogspot.in/
    पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।

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  11. मनवा कोरी चूनर है
    जीवन है रंगरेज़

    रंग-रंगीली होली के रंग सर चढ़ कर बोलें !
    और छुड़ाये ना छूटें !

    पम्मी जी,शुक्रिया. जो इस महफ़िल में शामिल किया.
    हर रंग के रचनाकारों को बधाई !

    जवाब देंहटाएं

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