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रविवार, 2 दिसंबर 2018

पीले फूल





बित्ते भर के
पीले फूल !

खिड़की से झांकते
सिर हिला-हिला के
अपने पास बुलाते,
इतने अच्छे लगे...
कमबख़्त !
उठ कर जाना पड़ा !

देखा आपस में
बतिया रहे थे,
राम जाने क्या !

एक बार लगा ये
धूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।

वाह ! क्या कहने हैं !
ये फूल मन के गहने हैं !

खुशी का नेग हैं !
भोला-सा शगुन हैं ।

इन पर न्यौछावर
दुनिया के व्यवहार ..
कम्बख़्त ये  ..  
बित्ते भर के
पीले फूल !




25 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 04 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद यशोदाजी.
      पाँच लिंकों का आनंद पर आना दिसंबर में पीलेफूलों का वसंत आने जैसा है !

      हटाएं
  2. एक बार लगा ये
    धूप के छौने हैं ।
    फिर लगा हरे
    आँचल पर पीले
    फूल कढ़े हैं ।
    या वसंत ने पीले
    कर्ण फूल पहने हैं ।....वाह ...वाह...वाह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अलकनंदा नदी के किनारे ही ऐसे फूल ज़्यादा खिलते हैं !
      धन्यवाद अलकनंदा जी .

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  3. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २२५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...


    यादगार मुलाक़ातें - 2250 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    उत्तर
    1. कभी-कभी बुलेटिन में फूलों के खिलने का समाचार भी आ जाए तो अच्छा लगता है.
      आभार ब्लॉग बुलेटिन.

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-12-2018) को "गिरोहबाज गिरोहबाजी" (चर्चा अंक-3175) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. गिरोहबाज़ गिरोह्बाज़ी में पीले फूलों का गिरोह !
      अच्छा हुआ धार लिया गया !

      धन्यवाद आदरणीय शास्त्रीजी.

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  5. कभी कभी ये फूल जिंदगी बन जाते हैं ...
    सुन्दर रचना है ...

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    उत्तर
    1. ..और ज़िन्दगी की खुशबू को दूना कर देते हैं !
      शुक्रिया,नसवा जी.

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  6. बहुत खूबसूरत रचना बित्ते भर के पीले फूलों की तरह.....बेहतरीन....

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    1. बित्ते भर के फूलों के बड़े कद्रदान !

      नमस्ते सुधा जी.धन्यवाद.

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  7. वाह बहुत सुन्दर कोमल भावनाएं ।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद कुसुमजी.
      आप ना समझेंगी तो कौन समझेगा ?
      आपके तो नाम में ही फूल खिले हैं !

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  8. बहुत सुंदर नरम एहसास से परिपूर्ण रचना..वाहहह👌

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    उत्तर
    1. आभार श्वेताजी.
      जी.उबड़-खाबड़ रास्ते में फूल नज़र आ जाएं तो धुल-धूसरित पगडंडी भी भाने लगती है. नरम फूलों का एहसास नम कर देता है मन को.

      हटाएं
  9. nice lines, visit to convert your lines in book form
    http://www.bookrivers.com/

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  10. उत्तर
    1. रश्मि प्रभा जी पहली बार किसी ने बताया कि... मेरी जुस्तजू ही मेरी पहचान है ..
      इस बात पर नज़र ठिठक गई. आपने बड़े प्यार से पढ़ा.सो धन्यवाद.अच्छा लगा.

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  11. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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    उत्तर
    1. संजय भास्कर जी धन्यवाद ।
      आपको आनंद आया, यह जान कर बहुत प्रसन्नता हुई ।

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