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शनिवार, 22 सितंबर 2018

हम बस गर्व करते रहेंगे ?

हम गर्व तो नहीं करते रह सकते।
उसने कहा।

छर्रे की तरह
उसका ये कहना
चीर गया।

उसने कहा
क्योंकि उसका कोई अपना
शहीद हुआ था।
वो ख़बर पढ़ कर 
नहीं बोला।

ज़माने ने पढ़ा
आगे बढ़ गया ।
शहीद का कुनबा
ठगा-सा रह गया।
इसलिए बोला।

अब क्या होगा ?
दो जून रोटी का
जुगाड़ कैसे होगा ?
पहाड़ से जीवन का
हिसाब कैसे होगा ?
सब जुटाना होगा।

गर्व से क्या होगा ?
कल फिर कोई शहीद होगा।
सारे देश को गर्व होगा।
फिर क्या होगा ?

कभी सोचा ?
बस गर्व करने से क्या होगा ?

कभी नहीं सोचा।
क्योंकि हमारा अपना
शहीद नहीं हुआ।

जो शहीद हुआ।
आंकड़ा था।
अपना नहीं था।
इसलिए फिर गर्व हुआ।

पर उसने कहा -
हम हमेशा,
गर्व तो नहीं करते रह सकते।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-09-2018) को "चाहिए पूरा हिन्दुस्तान" (चर्चा अंक-3103) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर प्रस्तुति,अतीत फिर जी उठा

    जीवन अर्पित किया देश को
    छाती गर्व से भर जाती
    मित हुआ वो मेरा
    बेटा देश का कहलाया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद,अनीताजी.
      हम सब को भी ऐसी सन्मति दें विधाता.

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. आभार आपका.

      प्रार्थना है हम भी करें कुछ ऐसा
      जीवन भी रचें सुन्दर रचना जैसा

      हटाएं
  4. शास्त्रीजी, हार्दिक धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. ह्रदय की इस हलचल को हलचल के पन्ने पर जगह देकर औरों तक पहुँचाने का शुक्रिया यशोदा जी. नमस्ते.

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  6. हृदय स्पर्शी रचना दो शब्दों में जैसे व्यथा दर्द और विड़म्बना
    सिमट आई है, "हम बस गर्व करते रहेंगे?"

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  7. धन्यवाद कुसुमजी. यह उस लड़के के मन का हाहाकार था जिसके परिवार के फ़ौजी के शव का भी नृशंस अनादर किया गया. तीर की तरह लगा. उसकी छवि में दूसरे फ़ौजियों की बच्चियों बीवियों और माँओं के मन का हाहाकार प्रश्नचिन्ह बन कर आर्तनाद कर रहा था.

    और विडंबना ये कि हम नुक्ताचीनी से ज़्यादा कुछ नहीं करते.
    क्यों हम सब गौतम गंभीर नहीं हो सकते जिन्होंने एक वीर शहीद की बेटी की पढाई का जिम्मा अपने ऊपर लिया है. केवल आंसुओं और आहों से स्तुति नहीं की.

    आपने अपने विचार संप्रेषित करने का समय निकाला.
    बहुत आभार.

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  8. बहुत सुन्दर मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना।
    सही कहा सिर्फ गर्व करने से क्या होगा...
    वाह!!!

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  9. हृदयस्पर्शी कभी सोचा ?
    बस गर्व करने से क्या होगा ?

    जवाब देंहटाएं

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