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सोमवार, 4 नवंबर 2013

आकाशदीप



ये लो मित्रों !
दिवाली बस आ ही गयी समझो !
आज धनतेरस है ।
सड़कों पर भीड़ का कोरस है,
                          हर तरफ़ ।   
और रोशनी का मेला है ,
                 चारों तरफ़ ।  

ये मुम्बई की दिवाली है ।
फुटपाथ पर लगे हैं फूलों के ढ़ेर ।
पीले और नारंगी गेंदा कई - कई सेर ।
रंगोली का साज़ो - सामान , खील बताशे ।
मिटटी के लक्ष्मी - गणेश, हटरी और अनगिनत दिये ।
रंग - बिरंगी कंदीलों की लगी है कतार ।
बिजली की झालरों से सजा है बाज़ार ।

हलवाई की दुकानों में 
चिने हुए मिठाई के डिब्बे ।
हर घर की बाल्कनी में ,
खिड़की में कंदीलें ।
पेड़ों के बीच झूलती कंदीलें ।
जिधर देखो उस तरफ़ 
बेशुमार कंदीलें  . . 
चालों में  . .  फ्लैटों में  . . 
झोंपड़पट्टी में  . .              
कंदीलें ही कंदीलें ।
चमचमाती दुकानों में 
तरह - तरह के पटाखे ।
दिवाली के मेले में 
किसिम - किसिम के तमाशे ।

हर तरफ़, 
खुशहाली की लहर ।
दुकानों के बाहर ,
घरों की ड्योढ़ी पर 
रखा है दिया ,
इस दिवाली का पहला दिया ।
दिया है तो रोशन है हर दिशा ।      

दिया है तो दिये तले 
अँधेरा भी होगा ही ,
कहीं न कहीं ।
काश कि इन अँधेरे कोनों तक 
हर सूने मन और आँगन तक 
पहुंचे रोशनी का पैग़ाम ।
दिये जलते रहें 
हर घर की दहलीज़ पर ,
आलों में ,
छज्जों पर  . . 
और सबके ज़हन में 
जगमगाते रहें 
आकाशदीप ।



5 टिप्‍पणियां:

  1. मुम्बई की दीवाली!!! तो आप का क़्याम मुम्बई में है। ख़ैर, दीवाली तो हर जगह एक ही है। पढ़ा तो लगा अपने आस पास की बात सुन रहे हैं। कुछ अलग होता है तो वह है आप का शब्द प्रयोग। इस मामले में इस बार थोड़ी निराशा हुई। आप इससे बहुत अच्छा कर सकती हैं। जैसे कि यह पंक्ति - दिवाली के मेले में
    किसिम - किसिम के तमाशे। यह किसिम - किसिम आप की शैली है। यही अलग है जो आप को पहचान दे रहा है। दीपावली की बात करें, तो कुछ समय के लिये अंधेरे को छोड़ा भी जा सकता है। क्यों न एक क्षण को प्रकाश में लीन हो जायें। केवल प्रकाश, जहां अंधेरे का कोई काम नहीं।

    कविता अपनी जगह अच्छी है। उसमें कोई कमी नहीं। ऊपर लिखे विचार मेरे अपने हैं। आप का सहमत होना ज़रूरी नहीं। ख़ुश रहें। लिखती रहें॥

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  2. लक्ष्य तो यही है जो बात आपने कही है । तमसो माँ ज्योतिर्गमय । रोशनी के उस मक़ाम तक पहुँचने के रास्ते में कहीं कहीं अँधेरा दिखा तो सोचा बाल दूँ एक दिया । शब्द प्रयोग की बात मन में नोट कर ली है । बताने के लिए धन्यवाद ।

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  3. अच्छा संदेश है। धनतेरस दीपावली से पहला दिन दिवाली का आगाज़ कह सकते हैं कुबेर की पूजा दहलीज पर दिया जलाया जाता है। पर कहते हैं दिवाली दिल वालों की होती है और दिअ पैसेवालों के पास होता है कुछ ऐसे भी है जिनके जीवन में दिवाली की चकाचौंध में भी अंधेरा होता है आपने उन सूने हृदयों अे लिए भी सुख की कामना की है। सुन्दर कविता।

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  4. नमस्ते ॐ प्रकाशजी । आपने कविता बहुत ध्यान से पढ़ी और समझी भी । आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । कृपया पढ़ते रहिएगा और अपनी राय देते रहिएगा ।

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  5. वाह। एक एक खास चीज़ इतने करीने से संजो ली। रोशनी देखना अम्मा के साथ छत पे। पापा के साथ दीये जलाना,उन्हे बुझने से बचना। मधुर यादें ताज़ा कर दी। दिवाली मना दी

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