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मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

आज, अचानक . . अभी !




आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

आज सुबह अख़बार में, एक अच्छी ख़बर पढ़ी !
एक अच्छी ख़बर से, सेरों उम्मीद बढ़ी !


आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

दूर देस से भाई का , फ़ोन आया अभी !
बात कर के हुआ ज्ञात, कि घर पर ठीक हैं सभी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

गुलाब के पौधे पर आज ,सुबह खिली एक कली !
फूल - पत्तियों से क्यारी , हुई है हरी - भरी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

बड़े दिनों बाद पड़ोसन के , चेहरे पर देखी हँसी !
अरसे बाद उसकी देहली पर , मोहक अल्पना सजी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

आज भोजन में दाल उड़द की ,बड़ी स्वादिष्ट बनी !
साथ में थी मिस्सी रोटी , और थी गुड़ की डली !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

बच्चों के साथ सुबह - सुबह , जम के फुटबॉल खेली !
दोस्तों ने मुझे छका कर , देखो शर्त जीत ली !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

बहुत दिनों पहले खोयी , एक पुरानी सीडी मिल गयी !
शब्दकोष के पन्नों में मिली , पिताजी की लिखी चिट्ठी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !





3 टिप्‍पणियां:

  1. अरे ये तो कुछ और है। कुछ बदल गया है इसमें। या मेरा बूढ़ा दिमाग़ कोरी कल्पना कर रहा है। जब मैंने इलाहाबाद जाने से पहले पढ़ी थी तो कुछ अंतर था शायद। या पता नहीं। मगर वह ज़्यादा अच्छी लगी थी। हर एक बात के बाद मन गाया था और मेज़ पर तबला भी बजाया था। यानि हर बात पर आनंद मनाया था।

    कविता जैसी है, वैसी है। मगर मन की यह भावना मुझे बहुत पसंद आई। जीवन की हर छोटी छोटी बात में आनंद ढूंढ लेना। एक अच्छी ख़बर पढ़ी, ख़ुश हो गये। पता चला घर पर सब ठीक है, ख़ुश हो गये। यही तो जीवन का सार है। और अब कविता की बात करें - घर पर सब ठीक होना, चेहरे पर हंसी, स्वादिष्ट दाल, खोई सीडी, पिताजी की चिट्ठी.... तो यह सादगी - 'ठीक' होना, हंसी के लिए 'उसकी देहली', 'बड़ी' स्वादिष्ट, 'पुरानी' सीडी, और पिताजी की 'लिखी' चिट्ठी... यह सादगी कमाल है। जीवन को शब्दों में न उलझा कर, जैसा है, वैसा ही देखना, और दिखाना, और सब से बढ़ कर - इस सफलता से दिखा पाना, बहुत बड़ी बात है।

    दिल ख़ुश हो गया मेरा। इस दीवाली पर शायद यह सब से अच्छा तोहफ़ा है। ख़ुश रहें। लिखती रहें। शुभकामनायें॥

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  2. शम्स साहब आपको कविता जैसी ज्यादा अच्छी लगी थी , वैसी ही ब्लॉग पर उपलब्ध है अब । हम जैसों को खुश होने का बहाना चाहिए बस । और किसी का जी खुश हो जाये तो क्या कहने ! सोने पे सुहागा !

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  3. हाँ, ये ही तो थी। मुझे लगा था मेरी कल्पना थी। दिल फिर से ख़ुश हो गया। जीती रहें। ख़ुश रहें॥

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