शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं ।
स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
कुछ और पन्ने
▼
बुधवार, 24 जुलाई 2013
मन
मन को क्यों बंधक रखा है तुमने ? मन को मुक्त कर दो. इस नन्हे से पाखी को नभ की ऊँचाई नापने दो, जीवन की गहराई जानने दो. उसके पंखों में है कितनी उड़ान . . परखने दो.
अति सुंदर। नन्हा सा पाखी.... उत्तम। ऐसी संज्ञाओं में आप को महारथ हासिल है नूपुर जी। अक्सर कुछ नया तो नहीं होता, मगर न जाने कहाँ कहाँ से उखाड़ कर लाती हैं आप। बस जी ख़ुश हो जाता है। नभ की ऊंचाई नापना, पंखों में उड़ान परखना, आज के ज़माने में कह पाना असंभव सा लगता है। हिन्दी कविता तो मर सी गई लगती है। मगर आप की पंक्तियों में ज़िंदा है। ख़ुश रहें। आबाद रहें। लिखती रहें॥
अति सुंदर। नन्हा सा पाखी.... उत्तम। ऐसी संज्ञाओं में आप को महारथ हासिल है नूपुर जी। अक्सर कुछ नया तो नहीं होता, मगर न जाने कहाँ कहाँ से उखाड़ कर लाती हैं आप। बस जी ख़ुश हो जाता है। नभ की ऊंचाई नापना, पंखों में उड़ान परखना, आज के ज़माने में कह पाना असंभव सा लगता है। हिन्दी कविता तो मर सी गई लगती है। मगर आप की पंक्तियों में ज़िंदा है। ख़ुश रहें। आबाद रहें। लिखती रहें॥
जवाब देंहटाएंshams sahab aap jaise sudhi janon ko padh kar khushi mile to likhna sarthak hua. dhanywad.
जवाब देंहटाएं