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रविवार, 14 अप्रैल 2013

उस लम्हे का सच



आम तौर पर 
जो काम करना 
ग़लत होता है, 
हो सकता है  
किन्ही परिस्थितियों में 
वही काम करना 
सही जान पड़े .
क्योंकि एक सच 
ऐसा भी होता है  
जो सही और ग़लत 
की परिभाषा से 
परे होता है .
ये सच 
सिर्फ अपने 
दम पर 
खड़ा होता है . 
ये सच 
यथार्थ से 
बड़ा होता है . 
ये सच 
उस लम्हे का 
सच होता है .



4 टिप्‍पणियां:

  1. बात बेहतरीन है। कहने का ढंग भी अच्छा लगा। मगर इसे पढ़ने से ठीक पहले "जीवन धुन के स्वर" पढ़ा है। ये नहीं करना चाहिए था मुझे। उसने इन पंक्तियों के ज़रा दबा सा दिया है।
    सच को भूमिका की ज़रूरत नहीं। मैं शुरू की पंक्तियाँ और कुछ शब्द निकाल कर फिर से पढ़ूँगा -
    सच
    सही और ग़लत
    की परिभाषा से
    परे होता है।
    सच
    सिर्फ अपने
    दम पर
    खड़ा होता है।
    सच
    यथार्थ से
    बड़ा होता है।
    सच
    अपने लम्हे का
    सच होता है॥
    हाँ, अब कुछ पल्ले पड़ा मेरे। बात सीधी और दोटूक। आप की भूमिका भी अच्छी है। मेरी ही अक्कल दोषायुक्त है। (यह शब्द हिन्दी में है भी, या नहीं? पता नहीं।) आप लिखती रहिये। ख़ुदा बरकत दे। ख़ुश रहिये।

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