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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

वो भी क्या दिन थे




वो भी क्या दिन थे,
आंसू नहीं थमते थे .
उपन्यासों के घटनाक्रम 
रुला देते थे .
उपन्यासों के पात्र 
संगी-साथी होते थे .
कहानी के उतार-चढ़ाव 
मन की नैय्या को देते थे हिचकोले .
किताबों की जिल्द में बंधे थे 
कितने ज्वार भावनाओं के .
वो लिखने वाले ,
जीवन गंगा में,
डुबकी लगा के ,
लिखते थे जो ,
उनके शब्द सजीव होते थे. 

और शेष उम्र के तकाज़े थे .
अनुभूति के कागज़ कोरे थे .
रंग चटख चढ़ते थे. 
और पूरे चढ़ते थे. 
तो क्या वय के साथ सारे 
रंग फीके पड़ गए थे ? 
आंसुओं में भीग के 
गीले कागज़ फट गए थे ?

नहीं . न कागज़ गले थे .
न अक्षर मिटे थे. 
पर बहुत जल्दी हम समझ गए थे ,
उपन्यास के पात्र झूठे नहीं थे .
वे सब परिचित-अपरिचित, अपने - पराये ,
सब अपने थे, आसपास थे .
हमेशा से वे सचमुच के लोग थे .
बस बदले तो नाम मात्र थे .
जो कथानक था .
कथित रूप से काल्पनिक था .
वर्ना , सब कुछ कहीं ना कहीं घटा था .
लेखक किस पात्र को कहाँ 
किस घटनाक्रम से जोड़ता था 
और अंततः जो कहना चाहता था 
या मन में जो भाव जगाता था ,
वही सार्वभौमिक संवेदना का सूत्र था ;
जो लेखक की कलम को पेंट - ब्रश बना देता था .
और पाठक के अवचेतन को कैनवस बना देता था .

उस उम्र में जब मन पर मनों 
जीवन संघर्ष की गर्द परत दर परत 
जमी नहीं थी ,
रंग सारे सच्चे और गहरे चढ़ते थे .
इसीलिए तब ही जान लिया था -
काल्पनिक कथा में जितना सच था ,
जीवन यथार्थ को उतना 
अच्छी तरह समझा देता था .

वो भी क्या दिन थे .
जब उपन्यासों ने हमें 
संवेदनशील बनाया .
जीवन को परखना 
और सराहना सिखाया .

वो भी क्या दिन थे .
जब आंसू नहीं थमते थे .

वो भी क्या दिन थे .
जब किताबों के पन्ने 
मन पर छपते थे .






3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी है। बहुत अच्छी है। बहुत दिनों बाद आप की कविता पढ़ी। या कोई भी अच्छी कविता पढ़ी।

    जिन मानव संवेदनाओं को आप ने उभारने की कोशिश की है, आज हम लगभग उनसे अंजान हो चले हैं। इस लिए यह और भी सराहनीय हो गई है।

    बीच की पंक्तियों में आध्यात्म झलक रहा है। मालूम नहीं आप जान कर उसे लाईं हैं, या आप का अन्तः मन अपनेआप ही उभर आया है।

    बधाई। बहुत बहुत बधाई॥

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  2. tahe dil se ki gai hausla afzai ke liye tahe dil se shukriya.

    adhyatm sambhavatah apne aap se kahi baat ka goodh apitu sahaj swaroop hai. aur isiliye kavita hai.

    aap padhte rahenge to bahut achha lagega

    punah dhanyawad

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  3. tushar ji apko bhi nav samvatsar 2070 ke liye hardik shubhkamnayen. tamasha-e-zindagi ke beech hum tahal aaye.wahin mulaqat hogi kabhi.
    namaste.

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