कुछ और पन्ने

रविवार, 2 सितंबर 2012

अशिक्षा



दरवाज़े की घंटी बजी ..
झाँक कर देखा 
वो खड़ी थी।
मुश्किल घड़ी थी।

कुछ देर पहले ही 
खबर सुनी थी,
उसकी बेटी ..
डेढ़ साल की बेटी 
मर गयी थी।

दरवाज़ा खोलते ही 
बिलख - बिलख कर 
रो पड़ी थी ..
भाभी s s s  मेरा लड़की चला गया !
कंधे पर हाथ रख कर,
भीतर बुला कर 
कुछ कहना चाहा..
पर कुछ भी कहना न आया।

कलेजे के दर्द से 
रह-रह कर पिराती,
वो धम्म से बैठ गयी 
ज़मीन पर
तिपाई की टेक लगा कर।

रह-रह कर 
रुलाई फूटती रही 
और वो कहती रही 
बेटी के चले जाने की कहानी ..
भाभी s s पता नहीं 
उसको क्या हो गया !
पहले सर्दी हुआ,
बुखार हुआ,
डाक्टर से दवा लिया,
फिर ठीक हो गया।
उसका बाद में 
जुलाब होने लगा।
रुकता ही नहीं था।
फिर से डाक्टर को दिखाया,
दवाई दिया।
ग्लूकोस का पानी दिया।
फिर जुलाब भी बंद हो गया।
भाभी s s  उसने खाना बंद किया।
पानी भी नहीं पीती थी।
फिर भी पानी पिलाया ..पिलाया।
पर दो दिन उसने कुछ नहीं खाया।
दो दिन से कुछ नहीं पिया।
एकदम कमजोर हो गई थी।
अस्पताल ले के गया।
उधर वो लोग बोला -
जग्गा नहीं है,
बड़ा अस्पताल में 
ले के जाने का।

पैसा तुम लोग के पास नहीं 
तो उधर ही जाने का .
अरे s s मैं कितना पैसा जमा किया,
सब घर में खर्चा किया।
सामान लिया, सब किया 
मैंने अक्केले किया।
पर मेरा लड़की का 
बेमारी इतना होने के बाद 
सब पैसा ख़तम हो गया !

लम्बा लेकर गया .. दूर  में।
वहां भर्ती किया।
मेरा लड़की को कितना सुई दिया।
इधर सुई दिया ..
इधर सुई दिया ..
कितना इंजेक्सन लगाया !
बाद में नस नहीं मिलता था 
तो सर में बड़ा इंजेक्सन दिया ..
मेरा बेटी का जान तभी गया।
मेरा बेटी चला गया।

बहुत अच्छा था मेरा बेटी।
कभी तंग नहीं किया .
हरदम हंसती थी।
मेरे से खूब बात करती थी।
मेरे से ही उसका जास्ती था।
बाप से नहीं था।
बाप शराब पी के घर कूं आता था।
मेरा बेटी बेमार थी,
तब भी मारता था,
जबरदस्ती मुंह में खाना देता था।

तेरी बेटी को लेकिन हुआ क्या था ?
डॉक्टर क्या बोला ?

कुछ बोला नहीं डाक्टर।
इतना बड़ा फाइल था ...
मैं उधर ही छोड़ कर आई।
मेरे को नहीं पता उसको क्या हुआ,
भाभी मेरा लड़की चला गया।

जी ? कुछ कहा आपने ?
हाँ। वाक़या सुना हुआ लगता है ?
क्यों नहीं लगेगा ?
न जाने कितने घरों में 
ये हादसा होता है ..
बार-बार होता है।
पता भी नहीं 
बच्चे को हुआ क्या था,
डॉक्टर ने भी नहीं बताया।
अस्पताल से डॉक्टर के बीच भागते-भागते 
देखते देखते बच्चा इस दुनिया में नहीं रहा।
और माँ - बाप को कुछ नहीं पता।
जैसे मलेरिया का ताप चढ़ता है,
बच्चे की माँ हिलक-हिलक कर 
रह-रह कर 
चिल्ला कर रोती है,
आंसू पोंछती है 
और सोचती है 
अब और बच्चा नहीं करेगा।
मेरा तीन बच्चा बेमारी में गया।
मेरा आदमी को तीन लड़का चाहिए।
पर अभी लड़का भी नहीं।
लड़की भी नहीं।
मेरे को नहीं चाहिए।

वो घरों में काम कर-कर के 
घर चलाती है।
शराबी बाप से बच्चों को बचाती है।
बच्चा खोने की पीड़ा पचाती है।
और फिर तैयार हो जाती है।
आने वाले दिन का सामना करने के लिए।
दिल दहला देने वाले दुःख से लड़ने के लिए।

काश कि भाग्य थोडा भी उदार होता ..
और यदि साहस को शिक्षा का आधार होता ..
   


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ अपने मन की भी कहिए