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शनिवार, 1 सितंबर 2012

खुश रहने के लिए



मुझे 
खुश रहने के लिए
कोई ज़्यादा 
जुगाड़ की ..
कीनखाब 
साज़ो-सामान की
ज़रुरत नहीं .

मुट्ठी भर सपने,
आसपास हों अपने,
बड़ों का आशीर्वाद,
बच्चों की शरारत,
तिल भर भरोसा,
रत्ती भर जिज्ञासा,
प्रेम की घुट्टी,
हिम्मत की बूटी,
दाल-भात या खिचड़ी ,
तवे पर फूली रोटी,
रेडियो पर बजते गाने,
श्रीमतीजी के उलाहने,
दोपहर की झपकी,
सुबह शाम की घुमक्कड़ी ..

कुल मिला कर 
ज़्यादा बखेड़ा नहीं।
यही s s  रोज़ का दाना-पानी 
और छटांक भर 
जीने की मस्ती,
बस काफ़ी हैं मेरे 
खुश रहने के लिए। 

   
 

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