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रविवार, 15 जुलाई 2012

कालीदह लीला


कन्हैया की
कालीदह लीला,
जब जब देखी
अंतर में मुखर हुई
यही प्रार्थना ..
हे कृष्ण कन्हैया !
जब-जब मेरे मन में
अनुचित भावों का
नाग कालिया,
फन उठा के,
मेरे विवेक को ललकारे,
तुम इसी तरह आ जाना
दर्प सर्प को वश में करना ।
और नाग नथैया
ऐसा नृत्य करना ..
अंतर झकझोर देना,
ऐसी बांसुरी बजाना  ..
बिखरे सुर जोड़ देना,
सम पर लाकर भले छोड़ देना .

दमन हो अहंकार के विष का,  
ऐसा आत्मबल और भक्ति देना ।


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लीला चित्रण आभार सहित - श्री अनमोल माथुर
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5 टिप्‍पणियां:

  1. आशा नहीं है और कुछ, बस यूं ही मेरे मन को चरणस्पर्श देते रहना..

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  2. आपने लीला को समझ लिया। जो गोपियां गोपिका गीत में रोते बिलखते कह पाई, फणी-फणा-आर्पितम ते पदांबुजम, वो आपने इतनी सरलता से कविता में के दिया।

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