नमस्ते namaste
शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं । स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
कुछ और पन्ने
(यहां ले जाएं ...)
मुखपृष्ठ
Impressions
मयूरपंखी स्मृतिचिन्ह
▼
शनिवार, 14 अप्रैल 2012
लतीफ़ा
समझ में आया तो
दिल खोल कर हँसा.
आखिर लतीफ़ा क्या था
अपना ही किस्सा था
जीने का हिस्सा था ..
समझ लीजिये !
वाकया समझ कर सुन लो,
लतीफ़ा समझ कर हँस लो..
तो जीना आसान हो जाये,
खुश रहने का सबब बन जाये !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कुछ अपने मन की भी कहिए
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कुछ अपने मन की भी कहिए