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गुरुवार, 11 अगस्त 2011

आखिर कब आयेगा काम करने का दिन ?





हे परम पिता परमेश्वर !
हे ईश्वर !
कब तक ?

कब तक
लोगे परीक्षा
धैर्य और
सहनशीलता की ?

किसी दिन
हिम्मत का बाँध
टूट गया तो ?
चेतना लुप्त हो गई तो ?
तो क्या होगा ?
कौन पालेगा
मिथ्या स्वाभिमान के
अवशेषों को ?

अवश्य !
इतना बोध तो है मुझे..
कोई ना कोई कारण होगा
इस बेतरतीब घटनाक़म का..
तुमने ज़रूर कुछ सोच रखा होगा..
क्योंकि,
सृष्टि में तुम्हारी
निरर्थक
कुछ भी नहीं होता.
पर क्या
जीवन सारा
दुर्भाग्य से लङने में ही
बीत जायेगा ?
लङते लङते जो सीखा
वो किस दिन काम आयेगा ?
सहते सहते ही
सारा जीवन जायेगा,
या कुछ कर दिखाने का
अवसर भी आयेगा ?

ये ठीक है कि आत्मरक्षा
सर्वोपरि है,
कुछ करने को बचे रहने के लिए..
ये भी ठीक है कि
आत्मसमर्पण की अपेक्षा,
अपनी अस्मिता की रक्षा
ज़रूरी है.
अपनी स्वतंत्रता की रखवाली
कर्तव्य निभाने की
पहली सीढ़ी है.
जब तक हम हारे नहीं,
तब तक अपनी दुनिया के
हम राजा हैं.

पर राजा अगर
किले को बचाते-बचाते ही
चुक जायेगा,
तो प्रजा की सेवा का
बीङा कौन उठायेगा ?
खुशहाली के खेत जोतने का
दिन कब आयेगा ?
 


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