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गुरुवार, 27 मार्च 2025

जगत का रंगमंच


खचाखच भरा हाॅल है ।

बिगुल बज चुका है । 

अब शुरु होता है,

दुनिया का खेला ।

सामने है बङा-सा पर्दा

जो अभी उठेगा ।

 

जैसे ही पर्दा उठेगा

प्रत्येक पात्र सजग

किरदार में आ जाएगा ।

पहचानना मुश्किल होगा !

 

मुखौटों को हम जानते हैं,

किरदार को नहीं ना !

इतने पास से कब देखा है

किसी को नकाब हटा कर ?

 

नाटक में रहस्य है,रोमांच है !

इसी प्लाॅट में तो मज़ा है !

वर्ना सच कौन जानता है ?

या जानना चाहता है ? 

इसलिए वेश-भूषा बदल-बदल

सच सबको छकाता है !

 

अंत तक पहुँचते-पहुँचते सच

ग़ायब हो जाएगा …

किरदार सबके मन भाएगा। 

सच की परवाह किसे है ?

मुखौटा ही हाथ आएगा ।

 

तालियों की गङगङाहट !

पटाक्षेप होते-होते सच

दर्शक दीर्घा से चुपचाप 

बाहर निकल जाएगा ।

 

सच साधारण जन है ।

कहीं भी मिल जाएगा ।

 

रंगमंच जीवन बूझने की 

बहुरुपी कला है ।

बहरुपिया हमेशा 

पहेलियाँ ही बुझाएगा ।

 


मुंबई स्ट्रीट आर्ट से ली छवि उधार.. साभार ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह अत्यंत सुंदर जगत का रंगमंच लाज़वाब रचना।
    सादर।
    --------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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  2. रंगमंच के माध्यम से बहुत कुछ कहती बहुत सुन्दर रचना नुपूरं जी!

    जवाब देंहटाएं

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