नभ के भाल पर
जब हुआ उदय
दूधिया चंद्रमा,
झरने लगी चाँदनी
शीतल उजियारी
छल-छल गगरी !
को जागरी ?
जो जाग रहा था,
मनसा वाचा कर्मणा,
उसने पाई चाँदनी
भर-भर अंजुरी,
जगत हुआ तृप्त
बूँद-बूँद अमृत
जब बरसा धरा पर ।
माँ लक्ष्मी की श्री
चाँदनी में घुली
ह्रदय में समाई ।
मानस हंस धवल
चुगते मोती उज्जवल
तरल अनुभूति ,
धीर धरती धरित्री ।
मुदित हुआ मन
वृंदावन में बजी वंशी
मृदंग पर पङी थाप
छन छन नूपुर ध्वनि
सुन जागी रासस्थली
जुगल जोङी संग सखी
आह्लादित रास रस पगी ।
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छवि साभार : जयति गोस्वामी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 20 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशरद की पूर्णिमा को बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंवाह! लाजवाब। शरद पूर्णिमा की रात का जीवंत वर्णन।
जवाब देंहटाएंवाह! शब्द नूपुर की मोहक खनक!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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