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गुरुवार, 6 जून 2024

बनना वृक्ष समान


जो काम करो लगन से करना,

और जीना एक वृक्ष समान ।

मिट्टी में अपनी जङ फैलाना ।

मिट्टी से सदा जुङे रहना ।


मज़बूत तना सह लेता है

मौसम के विषम उत्पात ।

मेरूदंड रहे सीधा रहना सावधान !

ताकी साध सको जीवन के झंझावात।


जब नव पल्लव कर दें आच्छादित 

डाल-डाल और खिलने लगें फूल,

नीङ बना कर बसने लगें पंछी सहज

और लगा रहे चिङियों का चहचहाना !

 

कोयल का कूकना, गिलहरी का दौङना !

तोता और मैना का सुर में सुर मिलाना ।

गौरैया का फुदकना, तितलियों का आना..

हरे-भरे संसार में अपने आश्रय देना ।


फल आएं तो परिवार में बाँट लेना ।

ग्रीष्म,शीत, वर्षा, वसंत ऋतु का आनंद लेना।

और जब आए पतझङ मान सहित विदा करना ।

हरे-भरे दिनों में फल-फूल,ठंडी छाँव,प्राणवायु देना ।

सूख कर भी आता काम जिस तरह हर छोटा-बङा वृक्ष 

तुम भी आजीवन करना ऐसे काम जो आएं सबके काम

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद, ओंकार जी. "वृक्षन से मत ले, मन तू ..." सूरदास जी का पद बहुत सुन्दर और मार्मिक है. आपने शायद पढ़ा होगा..

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. सविनय, धन्यवाद. यशोदा सखी, बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं.

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    2. सविनय, धन्यवाद. यशोदा सखी, बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं.

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  3. पेड़ के जैसा बनना होगा, तभी जगत यह अपना होगा

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    1. क्या बात कही अनीता जी ! गागर में सागर ! धन्यवाद.

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