चाय गरम चाय !
सुनते ही महाराज !
आँख खुल जाय
नींद भग जाय !
जो चर्चा की जाय
पी-पी कर चाय !
झट्ट समझ में आय
वेद वाक्य बन जाय !
पास में रख कर चाय
पढ़ाई जब की जाय !
ज्ञान चक्षु खुल जाएं !
पाठ याद हो जाएं !
बारिश में हों भीजे !
छतरी थामे - थामे !
टपरी की चाय पीजे !
परम तृप्ति मिल जाए!
हाय, बाय, और चाय !
तीनों में प्राण समाय !
समीकरण बन जाय !
यह सुख बरनौ न जाय !
ट्रेन स्टेशन पर जब आय !
मिट्टी के कुल्हङ में चाय !
सारी थकान उतर जाय !
सफ़र सुहाना हो जाय !
चाय ! चाय गरम चाय !
सुनते ही जान आ जाय !
चुस्की से चुस्ती आय !
सुस्ती की दूर हो बलाय !
हा हा l चाय बेच कर देखिए क्या पता कभी प्रधानमंत्री हो जाएं :)
जवाब देंहटाएंBahut sunder
जवाब देंहटाएंबहोत खूब नुपुरजी, ये कविता मैने चाय के साथ पढ ली,क्या खूब लगी--सचिन प्रभुणे
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 29 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति चाय का मर्म चाय पीने वालों से पूछो आखिर कुछ तो विषेश है चाय में।
जवाब देंहटाएंवाह चाय कुछ तो विषेश है तुझमें
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