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रविवार, 25 फ़रवरी 2024

सोच


चलो मिल कर सोचते हैं

फिर एक बार, 

कैसे इस दुनिया को

बनाया जाए बेहतर ।

वो दुनिया नहीं जो हमें

तोहफ़े में मिली है,

ईश्वर ने दी है ।

वो दुनिया जिसे 

हमने मनमानी कर के 

बिगाङा है ख़ुद,

और कोसते रहते हैं 

हालात को दिन-रात ।

जैसे चन्द्रमा 

अंधेरे के पर्दे हटा,

कभी पूरा,

कभी थोङा-थोङा,

अमृत चाँदनी का 

बरसाता है,

जैसे सूरज रोज़ाना 

रोशनी की संजीवनी उपजा

बेनागा अलख जगाता है ..

कर सकते हैं हम भी तो

अपने-अपने कोने को

उजला रखने की चेष्टा ।

मार्जन कर चित्त का

कर्मनिष्ठा का दिया बालना

और अंधकार से लोहा लेना,

ख़ुद को आज़मा कर देखना,

शायद बेहतर बना दे दुनिया,

नज़रिया संवार दे, हमारा सोचना ।



18 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. नमस्ते शास्त्रीजी . बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ. बहुत प्रसन्नता हुई. सविनय आभार.

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  2. वो दुनिया जिसे
    हमने मनमानी कर के
    बिगाङा है ख़ुद,
    .. सच ही कहा है! बहुत ही सारगर्भित विमर्श को शब्द दिए हैं आपने मित्र!

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  3. कब से सोच रहे हैं डॉ. जोशी भी
    आप भी उसी श्रृंखला में आ गई
    आभार सोच को लिए

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सखी, आपका आशय समझ तो नहीं आया..पर अच्छा ही होगा !

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं

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