कुछ और पन्ने

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

पीछे छूटते स्टेशन

स्टेशन से 

ट्रेन सरकते- सरकते

पीछे छूटने लगते हैं

प्लेटफ़ॉर्म और 

प्लेटफ़ॉर्म पर खङे लोग ।

प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ़

स्टाॅप नहीं होते ।

स्टेशन केवल

साइनबोर्ड नहीं होते ।

रेलवे-स्टेशन किसी

उपन्यास के पन्नों में

छुपे कथानक होते हैं,

कथानक में गुंथे

चरित्र होते हैं,

जो पूरे सफ़र में

साथ चलते हैं ।

तब भी जब काॅल 

ड्राॅप होने लगते हैं ।

यादों से अभिषिक्त 

आँसू बहने लगते हैं ।

जो कहना-सुनना

रह गया था,

उनका गिला-शिकवा

करते-करते सफ़र

तय हो जाते हैं,

फिर उन्हीं रास्तों पर

चलते-चलते, 

बात पूरी करने की

उम्मीद में,

सफ़र होते हैं

मुकम्मल।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ अपने मन की भी कहिए