सुना आज दिन है गौरैया का
उसका दाना-पानी आबोदाना
और इंसान से उसका रिश्ता
जो टूट कर भी कभी नहीं टूटा ..
ये बस एक इत्तफ़ाक ही है क्या ?
जो आज ही है दिन कथा सुनाने का
किस्से-कहानी, दास्तानगोई का
सुनो कहानी एक थी चिड़िया ..
एक थी चिड़िया कैसे सच हो गया ?
अंदाज़ था ये तो आग़ाज़ करने का !
क्योंकि चुना आदमी ने बंद दरवाज़ा
कंक्रीट से चिन दिया खुला बगीचा ..
कटे दरख़्त, खड़ी हुई अट्टालिका
सुविधाएं अंधाधुंध, अपार जुटाता गया
ख़ुद चारदीवारी में सिमटता गया
बाग़-बगीचे, फूल,पंछी सब भूल गया ..
जब तापमान बढ़ता-चढ़ता ही गया
आसमान हो गया मैला,धुंआ-धुआं
नदियों का पानी भी दूषित हो गया
तब भी ना जागा विवेक मनुष्य का ..
झक मार मनाता अब दिन खुशी का !
कहानियों में खोजता पता सुकून का !
बिना दाम की दौलत में जो सुख था ..
सारे जहां की दौलत के बस का ना था !
मुट्ठी भर दाना मिट्टी का बर्तन पानी का
घर के किसी कोने में घोंसला तिनके का
घर भर देगा झट गौरैया का चहचहाना
मुट्ठी भर ख़ुशी, मुट्ठी जितना दिल अपना !
मुट्ठी में समा जाए इतनी सी बस गौरैया !
चुटकी में बदल देगी अंत इस कहानी का !
ख़ुशी से दाना-दाना चुगना सुख-दुःख का !
यही तो है जीवन के उत्सव की कविता !
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