कुम्हार के
चाक पर
मिट्टी से गढ़े
छोटे-छोटे दिये
कुटिया के
आले में
ध्यानमग्न रहते
अंधेरा कम करते
साधनारत रहते ।
यही छोटे-छोटे
मिट्टी के दिये
दीपावली पर
जब एक साथ
बाले जाते,
अंतरिक्ष से भी
नज़र आते,
जुगनुओं जैसे
टिमटिमाते,
विश्व भर को
स्मरण कराते,
छोटे होकर भी
साधे जा सकते
काम बङे-बङे ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(३१-१०-२०२२ ) को 'मुझे नहीं बनना आदमी'(चर्चा अंक-४५९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंक्या बात है,बहोत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता है ।
जवाब देंहटाएंवाह छोटे होकर भी साधे जाते हैं काम बड़े
जवाब देंहटाएंगहरी बात कह दी आपने
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
हर बड़े काम की शुरुवात छोटे-छोटे कदमों से ही होती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सुंदर भावनाओं से गुथी हुई रचना मुग्ध करती है अभिनंदन ।
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