कुछ और पन्ने

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

फूल खिलते रहेंगे


हम फूल हैं ।
तंग घरों की 
बाल्कनीनुमा
खिङकियों में बसे ।

सलाखों से घिरे हैं 
तो क्या हुआ ?
हर हाल में, हर रंग में, 
खिल रहे हैं तबीयत से ।

अपनी मर्ज़ी से 
ना सही, 
गमलों में ही
जी रहे हैं 
ज़िन्दादिली से !

आख़िर फूल हैं !
मिट्टी में जङें हैं ।
धूप में छने हैं ।
नज़ाकत से पले हैं !
खुश्बू ही तो हैं !

खुश्बू ही तो हैं !
हवाओं में घुल जाएंगे ।
ज़मीं पर बिखर जाएंगे ।
ज़हन में उतर जाएंगे ।

खुश्बू ही तो हैं ।
खयालात में ढल जाएंगे ।
और फिर खिलेंगे ।
आख़िर हम फूल हैं ।
खिलते रहेंगे ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 22 जुलाई 2022 को 'झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये बाग के' (चर्चा अंक 4498) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. अपनी मर्ज़ी से
    ना सही,
    गमलों में ही
    जी रहे हैं
    ज़िन्दादिली से !
    फूल हैं खिलते रहेंगे
    बहुत खूबसूरत एकदम फूँलों सी
    रचना
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

कुछ अपने मन की भी कहिए