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बुधवार, 19 अगस्त 2020

कभी जाना नहीं कैसे


रात्रि के सूने निविड़ अंधकार में
निकल पड़ो अकेले अनमने से
रास्ता नापने निस्तब्ध निर्जन में
तो जान पड़ता है चलते-चलते
बहुत कुछ है अपनी परिधि में जिसे
जान कर भी कभी जाना नहीं कैसे 

न पत्तों की सरसराहट न कोई पदचाप
ऐसे में दूर कहीं से आने लगी मंद-मंद
मंदिर के घंटों की ध्वनि लयलीन और स्पष्ट
हृदय का कोलाहल करती शांत और आश्वस्त
गगन पर टंके चंद्रमा को भी हो रहा कौतूहल
बोझिल परिवेश में हुआ भला-सा परिवर्तन

अनायास ही खुल गए स्मृति के बंद किवाड़
मंदिर जाने के मार्ग में पड़ता था एक घर
टूटी-फूटी ईंटों से झांकता कुटिया का कोना
ढिबरी की रोशनी में मंजीरों का स्वर मधुर
एक साधु अपने में मगन गाता रहता भजन

आते-जाते बना रहा बरसों तक यह क्रम
कीर्तन में डूबा भक्त प्रसन्न भाव अविचल
रस यमुना प्रवाहित होती रहती प्रतिपल
लहर-लहर लयबद्ध प्रवाहित यमुना जल
तट पर हो रहा गान झिलमिलाता दीपदान

32 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर नुपुरम जी। अत्यंत भावपूर्ण चित्रामकता से सुसज्जित रचना 👌👌👌 सस्नेह शुभकामनायें 🌹🌹🙏🌹🌹

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद, रेणु जी. आपने इतने ध्यान से पढ़ी रचना. आभारी हूँ.

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  2. जोगी आया जोग करन को तप करने सन्यासी।
    हरि भजन को साधू आया वृन्दावन के वासी।।

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    1. श्रीनिधि..
      वृन्दावन के भक्तों का भाव तुमने पहचान लिया.
      ठाकुर को क्या भाता है ये भी तुमने जान लिया.
      ये पंक्तियां स्मरण कराने के लिए अनंत आभार.

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  3. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  4. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही सुंदर व् शांति देने वाली कविता। रात्रि का विश्राम और भक्ति भाव का आनंद मन में समा जाता है।
    सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार।
    आपसे अनुरोध है की कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए अनुग्रहित रहूंगी।

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    1. अनंता आपको शांत रस की अनुभूति हुई, यह जान कर बहुत प्रसन्नता हुई.
      अपने ब्लॉग का नाम और लिंक दीजिएगा. अवश्य भेंट होगी. शुभकामनाएं.

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  5. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 21-08-2020) को "आज फिर बारिश डराने आ गयी" (चर्चा अंक-3800) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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  6. शुक्रिया, मीना जी. बारिश डराने आये तो आये ! चर्चा तो होगी !

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  7. भजन में डूबे रहना और सदा प्रसन्न रहना।
    वृंदावन की कुंज गलिन में खोए ही रहना।

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    1. ऐसा ही हो ! धन्यवाद, अनमोल सा.
      भक्ति सबसे बड़ा वरदान जीवन का.

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  8. बहुत ही सुंदर सराहनीय हृदयस्पर्शी सृजन नूपुरं बहन।
    सादर

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    1. अनीता जी, आपका हार्दिक आभार, पढने और कहने के लिए. नमस्ते.

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  9. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 05 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  11. सुंदर चित्रात्मक सृजन नूपुर जी |

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  12. स्मृतियों का सुंदर शब्द चित्र

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