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सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

नट का नाच



हँसी आ गई
देख कर
बिजली के तार पर
नट की तरह
सूरज दादा को
संतुलन बनाते हुए !

इंसान की
क्या बिसात !
बड़े-बड़ों को
झंझटों में फंस कर
झूलते तारों में
उलझ कर
डगमगाते देखा ।

घटनाक्रम और
कालचक्र के पेंच ने
दुर्दांत टेढ़ों को
सीधा कर दिया ।
समय की
डुगडुगी बजा कर
चुटकी बजाते
सिखा दिया
नट का नाच ।

जब विकल्प ना हो
और गिरना ना हो
तो आ ही जाता है
इकहरी रस्सी पर
नट की तरह
दम साध कर
संभल कर चलना ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-10-2019) को     "झूठ रहा है हार?"   (चर्चा अंक- 3482)  पर भी होगी। --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    श्री रामनवमी और विजयादशमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार शास्त्रीजी.
      विजयादशमी की शुभकामनायें आपको भी.

      हटाएं
  2. जो नट नागर सूरज और चंद्रमा को नाच नचाता है, जो कनिष्ठिका पे पर्वत नचाता है, वो ही आपको, मुझको, हम सब को नचा रहा है। अद्भुत रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके भाव और शब्दों ने विचार की जड़ों को सींच दिया.
      अब नट नागर से निवेदन है ....
      अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल ...

      हटाएं
  3. हार्दिक आभार, पम्मीजी. एक लम्बे अरसे के बाद पाँच लिंकों में चुने जाने का सौभाग्य मिला. कृतार्थ हूँ. उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं

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