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सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

डायरी के ख़ाली पन्ने


बड़ा शौक है मुझे 
डायरियां इकट्ठी करने का..    
उन लोगों का है कहना 
जो जानते हैं मुझे।  

देखा है उन्होंने 
मुझे डायरियां खरीदते हुए,
डायरियों के इश्क में
मजनू होते हुए ..
खूबसूरत डायरी देखी नहीं
कि लट्टू हो गए !
आव देखा ना ताव
घर ले आए
सीने से लगा के !
बस यूँ समझ लीजिए
एक निकाह ही नहीं पढ़ा !
हम भी वर्ना ...
आदमी थे काम के !

कभी तशरीफ़ लाइए !
नाचीज़ के गरीबखाने पे !
शेल्फ़ में करीने से सजी
दिखेंगी डायरियां !
बहुत कुछ जिनमें
बाकी है लिखना। 
ख़ाली पन्ने नहीं ये 
दामन हैं उम्मीद का। 
किसी दिन देखना, 
मुझे आ जाएगा लिखना
अपने मन का। 

बस ये मत पूछियेगा
इन डायरियों का होगा क्या ?
कुछ ना कुछ तो होगा ज़रूर !
ये नाज़नीं ठहरीं मेरा गुरूर !

और क्या कहिये इनका सुरूर !
मरमरी काग़ज़ की खुशबू
कर देती है दीवाना !
अपने-आप से बेगाना !

जब डायरी का कोरा पन्ना
खुलता है आँखों के सामने,
जी में उमड़ने लगता है
जज़्बात का सैलाब !
और बाहों में समाने लगता है
संभावनाओं का असीम आकाश। 

आज नहीं तो कल बोल उठेंगे शब्द, 
और भर देंगे डायरी के सारे ख़ाली पन्ने। 
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज नहीं तो कल बोल उठेंगे शब्द,
    और भर देंगे डायरी के सारे ख़ाली पन्ने।

    बहुत खूब.... सादर

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  2. आभार शास्त्रीजी.
    सबके जीवन की अभिलाषा पूर्ण हो.
    एक ना एक दिन.
    किसी ना किसी रूप में.

    जवाब देंहटाएं

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