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मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

अपना कोना



"जीवन से लम्बे हैं बंधु , इस जीवन के रस्ते  .. " सुरम्या ने अपना चहेता गीत इतने दिनों बाद सुना तो वॉल्यूम बढ़ा दिया। मन्ना दा का गाया यह गीत जब से सुना था, तब से ही ना जाने क्यों बहुत अपना लगता था। अपना शहद-नीबू पानी का गिलास लेकर सुरम्या खिड़की के पास बैठ गई। खिड़की के पास लगे काले पत्थर पर बैठना उसे बेहद सुकून देता था।  खिड़की में लगे तीन-चार पौधे और विविधभारती पर बजते गीत उसके हमेशा के साथी थे।  हमेशा के हमजोली। बाकी सब आते-जाते रहे जीवन भर।  आज भी यह गीत प्ले हुआ तो ऐसा लगा मानो कोई सुन रहा है।  कोई समझ रहा है, जो उस पर बीत रही है। वास्तव में  .. जीवन से लम्बे हैं बंधु, इस जीवन के रस्ते  ..  

सब अपने-अपने रास्ते चले गए थे। पति अभिराम अपने काम में व्यस्त सीढियां चढ़ते जा रहे थे। अपनी कामयाबी से बेहद खुश। घर-परिवार सुरम्या के सुपुर्द कर निश्चिन्त। और सुरम्या से ही मीलों दूर।  बहुत दूर। 

बच्चे बड़े हो गए।  नया-नया उड़ना सीखा था।  पंख फैलाये आकाश की ऊंचाइयां नापने में लगे थे।  हाँ, तो क्या हुआ ? सुरम्या तुम यही तो चाहती थीं। कामयाब और खुश परिवार।  हाँ।  बात तो सही है।  पर यह नहीं सोचा था कि कामयाबी और ख़ुशी के साथ उदासी भी चुपके से आकर  घर में बस जाएगी . . बल्कि उसी के मन में घर कर जाएगी। 

दिन भर घर ख़ाली रहने लगा जब   .. सुरम्या ने धीरे-धीरे इतने बरसों से मन में लगी गिरहों को खोलना शुरू किया।  सबके चले जाने के बाद पूरा घर उसका स्टेज बन जाता। सुरम्या को हमेशा से अच्छा लगता था  .. बेकार चीज़ों को जोड़-तोड़ कर उन्हें काम की सुन्दर चीज़ें बनाना।  अब फिर से उसने घर के कोने-कोने को तराशना शुरू किया। पर दौड़ते-भागते परिवार की नज़र में कुछ भी ना आया।  जब कभी सब मिल कर बैठते और अपने-अपने काम के बारे में बढ़-चढ़ कर बताते, वह भी धीरे से अपनी बनाई चीज़ों के बारे में बताना शुरू करती।  पर सब जैसे एक औपचारिक मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ जाते। उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता। इन बैठकों में वह असहज हो उठती।  फिर उसने कोशिश करना छोड़ दिया। 

एक दिन उसे ख़याल आया कि उसकी बनाई चीज़ें उपयोगी और सुन्दर तो हैं पर उनसे वह बात नहीं कर सकती।  उस तरह नहीं जुड़ सकती जैसे किसी सजीव  .. क्यों ना खिडकियों को पौधों से सजा दे ! और चिड़िया के लिए घर भी बना दे !

फिर क्या था ! सुरम्या व्यस्त हो गई पौधों की बच्चों की तरह देखभाल करने में।  गौरैया के लिए सुन्दर-सा घर भी बनाया।  फूल खिलने लगे। गौरैया आकर बस गई।  आख़िरकार, उसने एक अपना कोना बना ही लिया था, घर की बेख़बर दुनिया में।  इस कोने में बैठ कर काम करने में मज़ा भी आने लगा। 

एक दिन उसके यहाँ काम करने वाली गुलाब ने उससे कहा,"भाभी, आप कितनी सुन्दर चीज़ें बनाती हो, इसको बाज़ार में बेचती क्यों नहीं ?"

सुरम्या बोली,"अरे ! तू भी क्या बेकार की बातें करती है ! ये कौन खरीदेगा ?"

गुलाब ने कहा,"भाभी, सब तरह के खरीददार होते हैं।  लोगों को अलग चीज़ चाहिए होती है।  जैसी किसी के पास ना हो। तुम कर के तो देखो ! मेरे घर के पास एक दीदी ऐसा ही सामान बनाती है। पर तुम्हारे जितना सुन्दर नहीं। फिर भी उसका दुकान चलता है। "

सुरम्या ने सोचा चलो ये भी कर के देखने में क्या बुराई है।  अपना सामान दिखाया दो-तीन दुकानदारों को। उन्हें अच्छा लगा। एक ने हामी भर दी। कुछ दिन लगे, और सामान बनाने में।  फिर दुकान में सामान पहुंचा दिया, गुलाब की मदद से। 

फिर इंतज़ार के दिन।  उसके राज़दार थे - गुलाब, पौधे और गौरैया। लगभग तीन महीने बाद कुछ सामान बिका। सुरम्या को ज़रा चैन आया।  पर गुलाब की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ! 

अभी कुछ देर पहले गुलाब अपनी कॉलेज में पढने वाली  बेटी जूही को लेकर आई थी।  उसने बताया कि वह अपनी सहेली के लिए गिफ्ट लेने गई थी।  घर आई तो गुलाब ने खुश होकर बताया कि ये तो भाभी की बनाई चीज़ है ! पर जब उसने दाम बोले तो गुलाब का माथा ठनका और वो सीधे सुरम्या  के पास बेटी को लेकर आ गई।  समझ में आ गया कि दुकानदार सुरम्या को कम पैसे दे रहा था।  पर ज़्यादा दाम पर बेच रहा था।  वह झूठ बोल रहा था।  

सुरम्या का मन फिर खिन्न हो उठा।  उसे लग रहा था  .. वह हर जगह ठगी गई।  रिश्तों में, जो अपने होकर भी उसकी भावनाओं और प्रतिभा से अपिरिचित थे। और अब ये  .. 

अचानक उसका ध्यान गौरैया के शोर मचाने पर गया। गौरैया बहुत ज़ोर से शोर मचा कर उसे पुकार रही थी। यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा था। गौरैया के घर में बड़ी चिड़िया मतलब..मैना आकर घर बसाना चाहती थी।  बार-बार आकर चोंच मार कर उन्हें डराती थी। उनके शोर मचाते ही सुरम्या कहीं से भी दौड़ कर आती और मैना को उड़ाती। इस बार भी सब भूल कर सुरम्या उठी और मैना  को भगाया। थोड़ी देर में गौरैया का जोड़ा हौले-हौले फुदक कर पास आया और घर में चली गया ।  शांति हो गई। 

लेकिन इस छोटी-सी उथल-पुथल ने सुरम्या की सोच का कोई तार झनझना दिया था।  इस छोटी-सी गौरैया के जीवन में कितनी अनिश्चितता थी। दिन में कई बार बड़ी चिड़िया का आक्रमण होता था। खतरे की तलवार हमेशा लटकती रहती थी सर पर।  पर इस नन्हे से जीव में जीने की अदम्य इच्छाशक्ति थी, जो कभी भी उसे हार मान  कर बैठने नहीं देती थी। खतरा टला।  चहचहाना शुरू !

सुरम्या को लगा अगर यह छोटा-सा जीव कभी भी अपने को निरीह नहीं मानता। एक पल खतरों से जूझता है, और दूसरे ही पल फिर वही चहचहाना, तिनके जोड़ना, बच्चों को दाना खिलाना,पंख फैला कर उड़ना .. वही सामान्य जीवन क्रम चलने लगता है तो  ..  

... तो उसके पास तो बहुत साधन हैं, विकल्प हैं और सामर्थ्य है। अब तक कभी हार मान कर आंसू नहीं बहाए तो अब क्यों ? ठगे जाकर भी औरों को ना ठगने का संकल्प ही उसका सबसे बड़ा संबल है। दुनिया बहुत बड़ी है।  इस ठौर नहीं तो किसी और ठौर। 

हिम्मत आते ही सुरम्या को समझ में आ गया कि उसे क्या करना है।  गुलाब और जूही को बुला कर उनसे बात की और तय किया कि जूही के कॉलेज में जब फेयर लगेगा तो जूही अपने स्टाल में सुरम्या का सामान रखेगी और अच्छे दामों में बेचेगी। सबको अपना नंबर भी दे देगी ताकि फिर किसी को कुछ चाहिए हो तो सीधे बात करे। अपने ख़ाली समय में जूही वह सामान पहुंचाती रहेगी। आगे-आगे फिर देखेंगे।  

अब जाकर सुरम्या को सच में चैन आया।  जूही के हाथ में उसकी मेहनत के चार पैसे आयेंगे। और सुरम्या को मिलेगा सबसे बड़ा धन - संतोष धन। कुछ पैसे भी मिलने से परहेज नहीं !

सहसा गौरैया का चहचहाना सुन कर सुरम्या अपने कोने में जाकर बैठ गई और उसका पंख फैला कर बार-बार उड़ना,फुदकना और चहचहाना देख कर मुस्कुराने लगी। 

पंख हैं, तो उड़ने से डरना क्या ? 


7 टिप्‍पणियां:

  1. आम औरत की छवि को उस की मनोदशा के साथ सुंदर उरेका है नुपुर जी बहुत अच्छी लगी ये सरल सी कथा ।

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    1. मन की वीणा का हार्दिक आभार.
      आम आदमी को सुकून और ताक़त आम बातों में ही मिल जाता है.

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  2. बहुत अच्छी शिक्षाप्रद कहानी, सादर नमस्कार

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    1. नमस्ते कामिनी जी.
      हर अनुभव कुछ सिखा ही जाता है.

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