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शनिवार, 31 अगस्त 2019

टिकुली की माला


पीला गेंदा, नारंगी गेंदा, मोगरा, रजनीगंधा, हरसिंगार, बेला, जूही और ये गुलाब !
टिकुली फूली नहीं समा रही थी ! सात साल की इस नन्ही परी  के हाथों में फूलों से भरी टोकरी नहीं, फूलों की घाटी ही सिमट आई थी !

वसंत पंचमी की मीठी बयार ने टिकुली को सुबह-सुबह टपली मार के जगा दिया था.सरस्वती पूजा के दिन फूलों की अल्पना बनाने और माला पिरोने का काम टिकुली को बहुत भाता था. अल्पना पूरी हो गई थी. अब माला पिरोने की बारी थी. बड़े मनोयोग से टिकुली काम में जुट गई. 

उधर टिकुली सुई-धागा लाने गई, टोकरी में एक-दूसरे से सट  कर बैठी फूल सखियाँ हंसी-ठिठोली करने लगीं आपस में.

बेला ने इतरा कर कहा, "मोती जैसा रूप मेरा ! है कोई मेरे जैसा ?"

रजनीगंधा ने नन्ही जूही का हाथ थामा और मंद-मंद मुस्काते हुए अपना पक्ष रखा, "अच्छा !"
"देखो जी ! रात की रानी और जूही को शायद तुमने नहीं देखा !
अजी ! बावरा कर देता है हमारी भीनी-भीनी खुशबू का झोंका ! "

चंपा-चमेली दोनों बहन सी ..दोनों ने अपनी आँखें तरेरी !
"अपनी ही अपनी कहोगी री ?
  हम भी तो किसी से कम नहीं !"

इतने में गेंदे ने अपनी कही !
"अब बस भी करो जी ! 
बहुत हुई तुम्हारी जुगलबंदी ! अब मेरी सुनो जी !
मेरी तो हर मंगल काज, हर पर्व पर होती है उपस्थिति ! अब कहो जी !"

"एक बात मैंने हमेशा देखी है। क्या तुमने भी गौर किया है ?"

सारी की सारी  चहक पड़ीं, "क्या ?"

"तुम सब बहुत सुंदर और सुगन्धित पुष्प हो. तुम्हारी तो बात ही निराली है !
पर कभी इस गुलाब पर भी नज़र डाली है ?"  .... ...... ..... ...... 

"गुलाब कहलाता तो फूलों का राजा है।  पर वो राजा, जिसके सर पर कांटों का ताज है।"  

सारे फूल मौन हो कर सोच में पड़ गए.... बात तो सही है। 
गुलाब के दामन में कांटे ही कांटे हैं। 

मोगरा भी भावुक हो पास ढुलक आया और हाथ जोड़ कर गुलाब से बोला, "वास्तव में तुम्हारी बलिहारी है ! कांटों में ही कटती सारी ज़िन्दगी तुम्हारी है। राजा की पदवी तुम्हें इसीलिए मिली है।"

सभी फूलों ने हामी भरी और शीश नवाया। यह सब सुन कर गुलाब लजाया और मुस्कुराया। बोला,"सब की अपनी नियति है। किसी को कोमल पत्तियां मिली हैं। किसी को कांटों का कवच मिला है। जितना अपनाओ जीवन उतना सरल है। हर बात के पीछे कोई कारण है। कांटे चुभते अवश्य है।  पर फिर भी मेरा रक्षा कवच हैं। जैसा समझो जीवन वैसा लगता है। यही मन और जीवन की सुन्दरता है। "

सारे फूलों ने सुगन्धित समर्थन जताया। जो कांटों में भी खुश हो कर जीता है, उसे ही गुलाब के रूप और सुगंध का वरदान मिलता है। 

सारे फूल टुकुर-टुकुर आकाश को देख रहे थे। और तभी खिलखिलाते हुए टिकुली सुई धागा लेकर माला पिरोने आ गई। 

टोकरी में झाँका तो ठिठक गई। अपलक देखती ही रह गई। फूल तो और अधिक खिल गए थे ! 
कितनी सुन्दर माला बनेगी ! माँ सरस्वती पर और भी खिलेगी !

माला में पिरोये वासंती फूल और बीच में गुलाब। टिकुली को क्या पता, इस बीच क्या हुआ था !
पर देवी सरस्वती ने सब कुछ देखा था। सारे फूल और अधिक  रूपवान हो गए थे, क्योंकि उनके मन संवेदना से जुड़ गए थे।  और टिकुली का मन था, माला का धागा। फूलों को पिरोने वाला। 

इस संसार में सबसे सुन्दर वह है , जो हर परिस्थिति में, दूसरों में भी सुन्दरता देखता है और उसे मन में पिरो लेता है। 



10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 31 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उत्तर
    1. निरर्थक अरुचिकर टिप्पणियों से बचने के लिए । थोक के भाव में आती हैं । असल में यह approval देने की धृष्टता है नही ।

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  3. गुलाब लजाया और मुस्कुराया। बोला,"सब की अपनी नियति है। किसी को कोमल पत्तियां मिली हैं। किसी को कांटों का कवच मिला है। जितना अपनाओ जीवन उतना सरल है। हर बात के पीछे कोई कारण है। कांटे चुभते अवश्य है। पर फिर भी मेरा रक्षा कवच हैं। जैसा समझो जीवन वैसा लगता है। यही मन और जीवन की सुन्दरता है। "

    जी बहुत ही सार्थक रचना।

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    1. आपकी सराहना ने सार्थक कर दिया ।
      हार्दिक आभार ।

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  4. बहुत सुंदर रचना!आपको हार्दिक बधाई!

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    1. प्रीति जी, आपका हार्दिक स्वागत है. नमस्ते.
      अच्छा लगा कि रचना आपको अच्छी लगी.धन्यवाद.

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