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रविवार, 14 अक्तूबर 2018

कविता तो वो है




कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।
सान पर 
चढ़ाया जा सके ।

विसंगतियों की
तेज़ धार पर
आज़माया जा सके ।
जिसके बूते पर
अपने सिद्धांतों पर
अड़ा जा सके ।

कविता तो वो है
जिसे जीवन गढ़े
मूर्तिकार की तरह ।
जो मिटाए ना मिटे
गोदने की तरह ।

या फिर वो है
जिसे मन की मिट्टी में
बोया जा सके ।
दिन-प्रतिदिन के चिंतन में
रोपा जा सके ।

कविता तो वो है
जो सहज सहेली बन
जी की बात
झट जान जाए ।

कविता तो वो है
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में 
जनम घुट्टी की तरह 
घोला जा सके ।

कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।


22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक आभार यशोदा जी ।
    नमस्ते ।

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  3. कविता स्लेट पे लिखे अमिट शब्द जो सदा चमकते रहें ...
    बहुत सुंदर रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिगंबर जी,

      स्लेट पर लिखे हैं शब्द
      तो कभी ना कभी
      मिटाए जाएंगे ही..
      पर कविता
      बची रहेगी
      ध्रुव तारे सी चमकती
      मन के आकाश में कहीं.

      धन्यवाद. नमस्ते.

      हटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने कविता को परिभाषित किया है नुपुर जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभिलाषा जी,धन्यवाद.

      परिभाषित ना करने की
      कोशिश में
      बार-बार कही जाएगी.
      कविता तो प्रतिबिम्ब है
      मन की भावना का,
      जैसी होगी
      अंतःकरण की छवि,
      वैसी ही
      दर्पण में
      नज़र आएगी.

      आपका आभार.नमस्ते.

      हटाएं
  5. कैलेंडर कविता कोष का है. पुस्तक नवांकुर प्रकाशन की है.
    दोनों का हार्दिक आभार.

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  6. उत्तर
    1. धन्यवाद अनीता जी.
      देखने वाले की दृष्टि सुन्दर हो, तब ही ऐसा होता है.
      नमस्ते.

      हटाएं
  7. अति सुंदर और निरा सत्य परिभाषित किया है आपने शुभकामनाएं नूपुर जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया सुप्रिया जी.

      जितनी बार कही जाएगी,
      कविता की परिभाषा
      हर बार
      बदल जाएगी.

      आभार आपका.नमस्ते.

      हटाएं
  8. वाह बहुत खूब!
    कविता क्या है ये भी खुद कवि के व्यक्तिगत विचार है बहुत सुंदरता से आपने अपने भाव रखे कविता के लिये।
    बधाई।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद कुसुमजी.

      जितनी बार
      जितने चश्मों से देखा,
      कविता को हर बार
      नए रूप में देखा.

      कविता की विविधता
      गढ़ती सुन्दरता.

      नमस्ते.

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. धन्यवाद सुधाजी.

      आपका स्नेह संबल सुन्दरतम है. हार्दिक आभार.

      हटाएं
  10. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  11. सच्च कहा आपने -

    "...
    कविता तो वो है
    जिसे अपनाया जा सके ।
    हम-तुम जो बोलते हैं,
    उस बोली में
    जनम घुट्टी की तरह
    घोला जा सके ।
    ...."

    बहुत सुन्दर रचना...मानो जैसे आपने मेरे मन की सारी बातें लिख दीं। सभी रचनाकार का यही लक्ष्य भी होना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
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