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रविवार, 5 अगस्त 2018

एक आला मित्रता के नाम का

कहो मित्र,
कैसे हो ?
एक अरसा हुआ,
न सलाम न दुआ ?
सब कुशल तो है ना ?
शिकायत नहीं करता,
बस दिया उलाहना ।
जिससे तुम जान जाओ,
याद बहुत आते हो ।
मन मसोस कर
कुछ करने पर,
अब भी टोक देते हो ।
परछाईं की तरह,
साथ चलती है तुम्हारी याद ।
पक्की है,
हमारी मित्रता की बुनियाद ।
क्या फ़र्क पड़ता है ?
तुम्हारा पास होना,
ना होना ।
जब तक निरंतर
होता रहे संवाद,
मन से मन का ।
मन का कोई कोना,
हो ना सूना,
इसलिए कहा ।
एक आला
कृष्ण-सुदामा के नाम का,
एक आला
हमारी मित्रता के नाम का,
सदा संजोए रखना ।


8 टिप्‍पणियां:

  1. Kitni pyari baat keh di, nirantar man se man ka samvaad! Essense of long distance friendships!jaise thakurji ne sudama ji ke mann ki baat jaan li, aur sudama ji ne apni dosti nibhai!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-08-2018) को "पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर" (चर्चा अंक-3056) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. झूले और झूले की पेंगों का स्मरण कराने के लिए
    और मित्रता के आले में दिया बालने के लिए
    हार्दिक आभार शास्त्रीजी.

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  4. आदरणीय सेंगर जी, यारी को ईमान मानने वाले यार को नमन करने वाली चर्चा / बुलेटिन में एक आला मित्रता के नाम का खूब जंचा होगा. आपका हार्दिक आभार.

    धन्यवाद अनमोल. कृष्ण-सुदामा की मिताई का स्मरण मन की कड़वाहट, शिकायत का मैल अश्रु जल से धो कर स्वच्छ कर देता है. सदा धन्य है, मित्रता जैसी ठाकुर ने निभाई.

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  5. धन्यवाद अनमोल सा । अक्सर आमने - सामने बैठे मित्रों में भी मन से मन का संवाद नहीं हो पाता । दूर की मित्रता की भली कही ।

    अच्छा, ये समझाइए .. सुदामाजी ने कैसे मित्रता निभाई ?

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  6. सा सुदामा जी की मित्रता के बारे मे क्या कहूं। एक पावन रिश्ता।ज्यादातर लोग याद रखते हैं की ठाकुरजी ने सुदामा जी को खूब दिया,पर क्या वो ये याद रखते हैं कि सुदामा जी ने कभी कुछ नही मांगा ठाकुरजी से।
    अखंडानंद जी माहाराज कहते थे कि सुदामा जी की पत्नी का नाम सुलक्षणा था। क्यूँ? क्युकि उन्हीने सुदमा जी को कहा कि आपके मित्र से मिलके आइए। ये नही कहा की उनस मांग के आना। उन्होने अपनी दोस्ती का कर्ज़ चुकाने के लिये नही कहा।ठाकुर जी भी उनको समझते थे। इसलिये उनको कुछ उनके सामने नही दिया। जब ठाकुर जी ने सुदामा जी को विदा किया तो कुछ साथ नही दिया। सुदामा जी ने अभी भी कुछ नही मांगा। ठाकुर ने उनकी ज़रूरत जान के उन्हे स्वतः ही सब कुछ दे दिया। इन दोनो ने सिखा दिया कि दोस्ती मे दिल से दिल के तार जुडने चाहिये, अपेक्षा का जन्जाल नही।

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    1. बड़ी सुंदर बात कही सा ।

      मित्रता की गरिमा का भान रहे ।
      ठाकुर की मित्रता का मान रहे ।
      जैसे सुदामा थे ।
      जैसे थे कृष्ण ।
      हम पर इनकी
      छत्रछाया सदा रहे ।
      ऐसी निश्छल मित्रता,
      ऐसी सरल भावना,
      हर भक्त के हृदय में
      श्वास के समान रहे ।

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