अंजुरी भर जल में
आकाश की परछाईं है ।
मिट्टी के छोटे से दीपक ने
सूरज से आंख मिलाई है ।
घर के टूटे-पुराने गमले में
हरी-हरी जो कोपल फूटी है ।
उसने अनायास ही मेरे मन में
जीवन के प्रति निष्ठा रोपी है ।
हो सकता है ये बात अटपटी लगे
पर धूप ने भी अपनी मुहर लगाई है ।
उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंWOW.... Ati sunder..Have A BLESSED DAY. ......God Bless You And Lots Of ......
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-06-2018) को "मौसम में बदलाव" (चर्चा अंक-2999) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 12/06/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
एहसास का यह मधुरिम स्वर .. लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंसबके मिलन से आशा का जन्म होता है ... जो जीवन निखारती है ... भावपूर्ण रचना ...
वाह!!बहुत सुंदर ..।
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर निष्ठा
जवाब देंहटाएंathisundar ! beautiful thoughts . thanks for sharing. - godhakrshnan
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