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बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

पत्तों को चुपचाप झरते देखा





















पतझड़ में 
एक एक करके 
हरे-भरे 
कुछ-कुछ पीले हो चुके 
पेड़ों से 
पत्तों को चुपचाप 
झरते देखा,
तो मन में 
पल्लवित हुई 
एक इच्छा ।

स्वेच्छा से,

यदि मन में 
गहरे पैठे 
पूर्वाग्रह और कुंठाएं 
यूँ ही आप झर जाएं,
नई संभावनाओं के लिए 
जगह बनाएं,
तो क्या खूब हो !

सहर्ष परिवर्तन का स्वागत हो !

जीवन में नित नया वसंत हो !




   

















6 टिप्‍पणियां:

  1. कोई पत्ता शायद आपके आँगन में जा गिरा ।
    बहुत आभार आपका ।

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  2. वाह! विराट संदेश का संप्रेषण करती है आप की यह खूबसूरत रचना। पूर्वाग्रह और कुंठाओं से हमारा मन खाली हो जाए तो फिर सृजन के लिए एक विशाल कैनवास तैयार होता है। आपकी रचना में भावों का घनत्व बहुत प्रभावित करता है। लिखते रहिए। बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  3. Ravindra Singh Yadav ji

    माननीय,

    हार्दिक आभार । आपने ध्यान से पढ़ी कविता और सृजन के लिए एक कैनवस भी दे दिया । रंग भर के आपको उपहार देने का मन है । कृपया पढ़ते रहिएगा और बताते रहिएगा ।

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