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सोमवार, 30 मई 2016

सोना

देखो दूर क्षितिज पर सूरज डूब रहा है
सागर की लहरों में सोना पिघल रहा है

1 टिप्पणी:

  1. क्या सोना पिघल रहा है!!! काला सोना है क्या? हर तरफ़ कालिख सी बिखरी हुई है। एक किरण सी है सोने की, जो ये लड़की पकड़े बैठी है। कभी सोचा कि पूरी दुनिया सोने के ही पीछे क्यों पागल है। सुनहरी सी बेकार की धातु। ऐसे ही पृथ्वी पर कम है। फिर भी सब को बस वही चाहिये। मानव नाम का जीव, हमेशा से पागल। अक़ल नाम की किसी चीज़ से तो कुछ मतलब था नहीं कभी। अंधेरे से तो रूह फ़ना होती थी। पानी मजबूरी थी, कि जीवन ही उससे था। सो नदी नाले के आस पास ही कहीं दुबका रहा करता था। सुबह सूरज की पहली किरण जब पानी पर पड़ती थी, तो कैसा अद्भुत दृश्य होता रहा होगा उसके लिये। पानी पर बिखरी सुनहरी किरणें, हर तरफ़ झिलमिल झिलमिल, जीवन का संदेश ले कर आती थीं। सुनहरा संदेश। फिर जब उसने धातु के रूप में सोना देखा, तो जीवन नज़र आया उसे उसमें। सुबह की जीवनदायी सुनहरी किरणें उसके हाथ में थीं। जितना सोना उसके पास, उतना जीवन उसके पास। तब भी इत्ती ही अक़ल थी। अब भी इत्ती ही अक़ल है। इस लड़की में तो उत्ती भी नहीं॥

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