जहाँ
सितारे ही दीये हैं,
मीलों
बर्फीले सन्नाटे हैं.
आतिशबाज़ी
गोलीबारी है,
सावधानी
ही पूजा है.
उस
सुनसान बियाबान में,
घर
से जो मीलों दूर हैं.
जो
सीमा की पहरेदारी में,
अलख
जगाये बैठे हैं.
उनकी भी आज दिवाली है .
जहाँ
पानी आंसू की बूँद है.
साफ़
गलियां एक अय्याशी हैं.
जहाँ
शोर ही आतिशबाज़ी है,
दो
जून रोटी पकवान है.
उस
झोंपड़पट्टी की बस्ती में,
हर
पल जीने की जंग है.
जिनका
कल रात लगी आग में,
जल
कर हुआ सब कुछ ख़ाक है.
उनकी भी आज दिवाली है.
इन
सबके नाम का एक दिया,
अब
मन में हमें जलाना है.
उनसे
जो बन पड़ा उन्होंने किया,
अब
हमें कुछ कर के दिखाना है.
उनकी भी आज दिवाली है.
उनको भी दीया जलाना है.
Ati Sundar!!!
जवाब देंहटाएंभाव-पूर्ण कविता !
जवाब देंहटाएंहेमंतजी और राकेशजी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंपढ़ते रहियेगा ।