मौसम ही है गर्मी का
आजकल , क्या कहियेगा !
धूप देती है चटका
तवे जैसा !
गर्म हवा का झोंका
तबीयत झुलसा गया !
इनसे जूझता - जूझता
जब सोनमोहर के नीचे से गुज़रा ,
छोटे - छोटे फूल पीले
पेड़ से झरे ,
मेरे ऊपर गिरे ,
हलके - से छू गए .
कोमल स्पर्श फूलों का
मानो आश्वस्त कर गया ..
कह गया -
धूप तपाती है ,
गर्म हवा नश्तर चुभाती है ,
पर सुनो , मन छोटा न करो ,
दरख़्त तले दो पल रुक कर देखो ..
इस मौसम में भी
छाँव का बिछौना
क्लांत पथिक को बुलाता है .
इस मौसम में ही
सोनमोहर के फूल झरते हैं .
waah re sonmohar ke phool...
जवाब देंहटाएंpyari si kavita...
dhanyawad mukeshji.
जवाब देंहटाएंवाह क्या कविता है
जवाब देंहटाएंअच्छी है
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