नमस्ते namaste
शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं । स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
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मयूरपंखी स्मृतिचिन्ह
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रविवार, 24 जुलाई 2011
अर्थात्
मन की बात
जब एक बार
काग़ज़ पर
उतार दी,
फिर वो बात
लिखने के साथ
पढने वाले की
भी हो गई..
सिर्फ़ अपनी
कहां रही ?
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