शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

वीरों के नाम का दिया

दिवाली की रात जब 
रोशन हों गली-मोहल्ले, 
बाज़ार रोशनी में नहाए,
चारों तरफ़ चमचमाते चेहरे, 
आकाश कंदीलों की कतारें ।
ठीक झाङफानूस के नीचे 
हर आदमी खङा हो जैसे 
तमाम मुश्किलात, ग़म भुलाए
अधेरी अमावस को छुपाए,
घर की दहलीज पर घर के 
हर कोने पर दीप झिलमिलाएं,
याद रखना उन घरों की 
सूनी चौखट को जिनके लाल
घर लौट कर ना आए ,
याद रखना उन रणबांकुरों को
जिनके बीवी,बच्चे, परिवार 
ठीक से रो भी न पाए
ले लेना उनकी बलाएं ।
उनको मत भुलाना, 
जिन वीरो को खोकर
हमनें पाई स्वतंत्रता ।
उनके बलिदान का
मंगल पर्व मनाना ।
हर दिन दीप एक मन में 
वीरों के नाम का जलाना ।

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

सच तो सच है

सच तो सच है ।
कहीं भी कभी भी
सर उठा कर
सीना तान कर
खङा हो सकता है, 
अचानक हमारे सामने,
हमारी आँखों में 
आँखें डाल कर
सीधे दिल में 
झाँक सकता है, 
खोल कर
अंतर्मन के कपाट।
सच तो सच है ।

पापा ने कहा है, 
पापा घर पर नहीं हैं ..
कहने वाले 
अबोध बालक की तरह
कर सकता है निरूत्तर ।

चारों खाने चित कर सकता है 
चल कर ऐसी शतरंज की चाल
जो चाल चलने वाले से पलट कर 
पूछे सवाल और दे दे मात

सच तो सच है ।
अच्छा तो बहुत लगता है,
जैसे कोई कीमती गहना..
पर चुभता भी है ।

दिन-रात से 
सच का क्या लेना-देना ?
दिन हो तो 
प्रखर सूर्य के प्रकाश में 
रात हो तो 
शीतल चंद्र की चांदनी में 
उजागर हो ही जाता है ।
सच तो सच है ।

सच को नहीं पसंद 
लुक-छिप कर रहना ।
रहस्य बने रहना 
और रूआब जमाना
अपने बङप्पन का ।
क्योंकि सच तो ..
जब तक सच है,
बहुत सरल है ।

हम उलझा देते हैं 
सच को,
जटिल बना देते हैं 
सच को अपने भय के
सांचे में ढाल कर ।

सच तो सच है ।
नदी के निर्मल जल में है ।
धुंध से परे नीले नभ में है ।
धरती की उपज में है ।
मेरी तुम्हारी नब्ज़ में है ।
ह्रदय के स्पंदन में है ।

सच तो सच है ।
जो है, सो है ।

सच तो सच है ।
उतना ही सरल,
उतना ही पेचीदा,
जितने हम हैं ।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

रोज़ आता है डाकिया


जिज्जी आज अगर आप होतीं
तो सच्ची कितना हँसती..
राम जाने !
जब आपको हम बताते
आज डाक दिवस है ।
हँसी से लोटपोट हो कर
धौल जमा कर कहतीं ..
चिट्ठी क्या कोई एक दिन
लिखे जाने की चीज़ है !
आख़िर रोज़ आता है डाकिया
लादे बस्ता भर कर चिट्ठियां !
जैसे सूरज बेनागा उदय होता है ।
ठीक उसी तरह ट्रिन-ट्रिन करता
अक्सर सायकिल पर सवार
या पैदल घर-घर फेरी लगाता है,
रोज़ आता है डाकिया ।
उसे इस बात का भान है,
किसी को इंतज़ार है 
ज़रूरी चिट्ठी, मनी आर्डर का ।
किसी ज़माने में मेघदूत आते थे, 
संदेसा लाते जवाब पहुँचाते ।
आज का मेघदूत है डाकिया ।
कोई एक दिन लिखता है भला !
चिट्ठी तो भावावेग की बाढ़ है ।
कभी किसी की दरकार है ।
प्यार भरी मनुहार है,सरोकार है ।
अकलेपन का अचूक उपचार है ।
अनुपस्थित से परस्पर संवाद है ।
ये सब क्या एक दिन की बात है ?
वाह रे ज़माने ! अजब रिवाज़ है ।
रोज़ आता है डाकिया बाँटता हुआ
चिट्ठियों में उम्मीद की अशर्फ़ियां ।
अपने बस्ते में लादे अनगिनत कहानियाँ 
सूत्रधार बन कर रोज़ आता है डाकिया ।