दिवाली की रात जब
रोशन हों गली-मोहल्ले,
बाज़ार रोशनी में नहाए,
चारों तरफ़ चमचमाते चेहरे,
आकाश कंदीलों की कतारें ।
ठीक झाङफानूस के नीचे
हर आदमी खङा हो जैसे
तमाम मुश्किलात, ग़म भुलाए
अधेरी अमावस को छुपाए,
घर की दहलीज पर घर के
हर कोने पर दीप झिलमिलाएं,
याद रखना उन घरों की
सूनी चौखट को जिनके लाल
घर लौट कर ना आए ,
याद रखना उन रणबांकुरों को
जिनके बीवी,बच्चे, परिवार
ठीक से रो भी न पाए
ले लेना उनकी बलाएं ।
उनको मत भुलाना,
जिन वीरो को खोकर
हमनें पाई स्वतंत्रता ।
उनके बलिदान का
मंगल पर्व मनाना ।
हर दिन दीप एक मन में
वीरों के नाम का जलाना ।