गुरुवार, 21 जुलाई 2022

फूल खिलते रहेंगे


हम फूल हैं ।
तंग घरों की 
बाल्कनीनुमा
खिङकियों में बसे ।

सलाखों से घिरे हैं 
तो क्या हुआ ?
हर हाल में, हर रंग में, 
खिल रहे हैं तबीयत से ।

अपनी मर्ज़ी से 
ना सही, 
गमलों में ही
जी रहे हैं 
ज़िन्दादिली से !

आख़िर फूल हैं !
मिट्टी में जङें हैं ।
धूप में छने हैं ।
नज़ाकत से पले हैं !
खुश्बू ही तो हैं !

खुश्बू ही तो हैं !
हवाओं में घुल जाएंगे ।
ज़मीं पर बिखर जाएंगे ।
ज़हन में उतर जाएंगे ।

खुश्बू ही तो हैं ।
खयालात में ढल जाएंगे ।
और फिर खिलेंगे ।
आख़िर हम फूल हैं ।
खिलते रहेंगे ।

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

गुरु दक्षिणा


सूर्य रश्मि
आत्मसात कर
फूल खिलते हैं ज्यों,
खिल कर जगत को
खुशबू देते हैं ज्यों ।

सूर्य का प्रखर तेज
अपने अंतर में रोप कर
शीतल भीनी चांदनी ज्यों
चंद्रमा देता है भुवन को ।

सूर्य की भीष्म तपस्या
एकनिष्ठ सेवा
और जीवन यज्ञ देख कर,
छोटा-सा मिट्टी का दीपक
पाता है संबल ।
करता है संकल्प ।
गहन अंधकार को ललकार
अडिग लौ
बन जाता है ज्यों ।

इसी तरह गुरु की वंदना कर
समर्पित की जाती हैं गुरु दक्षिणा ।
इसी तरह दमकती है शिष्य के
व्यक्तित्व में गुरु शिक्षा की आभा ।

कृष्ण ने अर्जुन को दी थी यही शिक्षा ।
अपने जीवन को बना दो कर्म की गीता ।

सुपात्र बनाने के लिए गुरु देते हैं दीक्षा ।
सीख कर सिखाना ही उचित गुरु दक्षिणा ।



सोमवार, 11 जुलाई 2022

बरस रहा है पानी


रात भर बरसा है
मूसलाधार पानी ।
बादलों के मन की
किसी ने न जानी ।
और इधर धरा पर
देखो दूर एक पंछी
जल प्रपात समझ
सबसे ऊंची जगह
ढूंढ ध्यानावस्थित
बैठा है अविचल ।
भीग रहा है निरंतर
सोख रहा है जल
शीतल अविरल ।
संभवतः मौन धर
सुने जा रहा है
बादलों की व्यथा ।

बरस रहा है पानी ।
वर्षा का पानी
लाया ॠतु धानी ।
धरती कितनी तरसी
फिर बरसा पानी
तरलता हुई व्याप्त ।

बारिश की रागिनी
बूँदों की अठखेली
थिरक रही बावली
धिनक धिन-धिन ।
सृष्टि हुई ओझल
बूँदों की तरल झालर
बन गई मानो चूनर ।
धुले समस्त आडंबर ।
स्वच्छ हुआ अंतर्मन ।

अब भी लगातार
वही मूसलाधार
बरस रहा है पानी ।
बहा ले जाएगा
मन की सारी ग्लानि ।
फिर से शुरू कहानी ।
इस बार न डूबेगी
कागज़ की नाव हमारी ।
अंतर मार्जन कर ढुलका दी
बादल ने अपने कहानी ।

बूँदों के बाँध सहस्र नूपुर
घनश्याम कर रहे मयूर नृत्य
धाराप्रवाह बज रहा मृदंग
हर्षित हरित मन उपवन ।
जलमग्न धरा ध्यान मग्न
बूँद-बूँद जल आत्मसात
बिंदु-बिंदु सोख रही मिट्टी ।
अब भी बरस रहा है पानी ।