मंगलवार, 3 मई 2022

अक्षय मनोकामना


प्रातः सूर्य प्रखर अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हुआ,
स्वर्ण कलशों में भर-भर पावन सोने-सा उजियारा ।
यही परंपरा रही थी सदा अक्षय पात्र होगा जिसका 
उसी के पात्र में उंङेला जाएगा तप कर निखरा सोना ।
अक्षय पात्र उसे ही मिलता है जो निरंतर श्रम करता
जिसके मन में हो दृढ़ संकल्प जगत की सेवा का ।
मार्ग में मिला एक निर्द्वंद फूलों से निश्छल बच्चों का,
बाट जोहते हथेलियां जोड़ बनाए नन्ही अंजुरी मुद्रा ।
दुआ मांगते हैं या आगे किया है अक्षय पात्र अपना ?
जो चाहे भला ही सबका और मांगे सबके लिए दुआ
वो ही तो सदुपयोग करेगा सर्वदा अक्षय पात्र का ।
ईद पर नेक बंदों को मिली ईदी में स्वर्ग की आभा ।
दमकने लगा सारा संसार हर्षित अपार सोने जैसा  !
स्वर्ण चंपा, गेंदा,कनेर, केसर, हल्दी,आम्र,जलेबियाँ !
संध्या समय जल की लहरों पर पिघलता खरा सोना !
अमलतास के झूमर,सोनमोहर,पत्तियों से छनती धूप !
पीत वसन पीतांबर, चंदन लेपन, किरणों की झालर ।
अक्षय विनय, विद्या, सुमति, स्वास्थ्य,संवेदना, सद्भाव,
यश, स्नेह मिले उसे, जिसका सरल सोने-सा हो मन ।



रविवार, 1 मई 2022

मज़दूर के हाथों में


एक मज़दूर के
खुरदुरे हाथों की 
गहरी लकीरों में 
खुदी होती है 
समाज की नींव ।

उसके मज़बूत 
कंधों पर
टिकी होती हैं, 
सभ्य समाज की
आलीशान इमारतें,
और वो दीवारें 
जो हम खङी करते हैं, 
उनके और अपने
बीच में ।

रोज़ फेरी लगाता है 
कर्मों का देवता,
जब झुटपुटा-सा 
होता है,
जब जलते चूल्हे की 
मध्यम रोशनी में 
कौंधते हैं,
मज़दूर परिवार के
मेहनत से तपे बदन ।
एक हल्की-सी मुस्कान 
जैसे दूज का चांद ।
शुक्र है ऊपरवाले का
हाथ-पांव सही सलामत 
रोटी खा कर तान चादर
नींद में बेसुध सोता है।
उधर ऊंचे मकानों में 
कुछ इंसान तङपते हैं 
एक अदद नींद के लिए ।

देवता सब देखता है ,
माथा सहला कर कहता है,
समाज को उतना ही मिलता है 
जितना वो मेहनत करने वाले
श्रमिक को पारिश्रमिक, आदर,
सुरक्षा और खुशहाली देता है ।

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

बुकमार्क्स ले लीजिए !


पढ़ने के शौकीन दिल थाम कर ध्यान दें !
लपक लें झटपट मौका हाथ से जाने न दें !
यह चीज़ है कमाल की आपके काम की !
हमेशा नहीं मिलतीं नैमतें अपने रूझान की !

पढ़ते-पढ़ते जब कोई काम आ जाए ..
लौटें तो पुस्तक का पन्ना खो जाए !
विद्यार्थियों की तो और बङी बलाएं !
किताबों के समंदर में डूबते ही जाएं !

आप सबके लिए है एक ही उपाय !
जो हिंदी में पुस्तक चिन्ह कहलाए ।
छोटे-बङे सजीले बुकमार्क आज़माएं !
मनभावन डिज़ाइन छांट कर ले जाएं !

दाम तो हुज़ूर इनके कुछ भी नहीं जी !
जितनी कारीगरी इनकी मन को लुभाए !
ख़ास बात ये कि छोटे बच्चों ने हैं बनाए !
बहुत कुछ कहती हैं इनकी कल्पनाएं ।

शादी के कार्ड जो रद्दी की शोभा बढाएं ।
कैलेंडर,लिफ़ाफ़े,चित्र, जो काम न आएं ।
बचे हुए रंग, कतरनें , सब काम में लाएं ।
होनहारों के रहते कुछ भी बेकार न जाए ।

डायरी, किताबों की, नूरानी रंगत हो जाए !
पढ़ते-पढ़ते कहाँ रूके थे, यह याद दिलाए ।
स्वाभिमानी बच्चों को स्वावलंबी बनाएं ।
कद्रदान मनपसंद  चिन्ह खरीद ले जाएं ।

कान किताबों के उमेठने की नौबत न आए !
बुक काॅर्नर्स की टोपियाँ कोनों को पहनाएं !
सुलेख,सुविचार,फूल-पत्ती,मांडने से सजाएं,
इन्हें पढ़ने के सफ़र में मील का पत्थर बनाएं ।

÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

कलाकार : 
माखनचोरी - उड़ीसा के अनाम कलाकार 
अंग्रेज़ी बुकमार्क - वृंदा शांडिल्य 
शेष दो अपने बनाए हुए 

÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷