सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

Street Lights


Remember the glowing street lamps ?
Down the old lane in the nights ..
When we studied in our homes
Surrounded by reassuring comforts..

In breaks we looked out of our windows
To feel the cool breeze in the trees,
Admiring the flower like street lights
Beaming like blessings on the boys,
Sitting under them studying religiously
Holding the books close to their eyes.

For the mellow yellow light of the lamps
Was all they had cradling their hopes.
They blinked and scribbled their notes
In their stained one - sided used sheets.

So many of them sitting on torn chataais
Determined to overcome life's adversities.
Stubbornly challenging their difficult destinies.
Once they would pause to eat chapatis.
Looking up at the quiet twinkling stars.
All these students preparing for boards.
Some at home and so many on the roads.

Look at these flowers resembling street lamps. 
Don't they remind you of those diligent days ?
And those boys studying under the street lights ?
Wherever they are irrespective of results.
Hope now there is enough light in their  homes.

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

विद्या ददाति विनयम्

विलक्षण है निस्संदेह 
आपकी बहुआयामी प्रतिभा ।

किंतु क्या करें बताइए 
आपकी विद्वता का ?
जिसके भार तले 
साधारण जन मन
दबते चले जाते हैं ।
धराशायी हो जाता है 
आत्मविश्वास इनका,
तिनका-तिनका जोङा
जो साहस जुटा कर ।

लाभ क्या हुआ?
यदि ज्ञान आपका
हमेशा आंखें तरेरता,
तत्काल कर दे स्वाहा 
किसी की सीखने की 
प्रबल इच्छाशक्ति ?

हमने सुना तो ये था,
फल-फूल से लदा
वृक्ष और झुक जाता है ।
जो जितना ज़्यादा 
जानता है,
उतना ही विनम्र 
होता चला जाता है ।

यदि लक्ष्य था विद्या का 
प्रभुत्व सिद्ध करना,
तो चाबुक ही क्या बुरा था,
अज्ञानी को हांकने के लिए ?
तुम बिल्कुल भूल गए क्या ?
समाज में सबको नहीं मिलता 
अवसर एक जैसा सीखने का ।

गुरुता वो नहीं जो किसी सरल सीखने वाले को
खामियां गिनवाए,अहसास कराए तुच्छता का ।
विद्या है सजल आशीष माँ का,सदा साथ रहता ।
शिक्षा है एकमात्र अनिवार्य अवलंब जीवन का ।
प्रथम संस्कार है सबसे सीखते रहने की विनम्रता ।
दीक्षा मंत्र है निर्भय हो प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता ।
अनुगत को सजग स्वालंबन में ढालने की दक्षता ।
अंतर में अंकुर आत्मविश्वास का रोपने की उदारता ।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

सही दिशा

उठो अब जागो !
दरवाज़ा कोई
खटखटा रहा,
आतुर है तुम्हें 
बुलाने को,
साथ ले जाने को ।

बाहर निकलो ।
देखो दुनिया की 
रौनक, चहल-पहल ।
काम पर सब के सब 
निकल पङे हैं ।

तुम क्यों हताश हो ?
जीवन से क्यों निराश हो ?
भागदौड़ आपाधापी से 
निरर्थक व्यस्तता से त्रस्त हो ?

चले जा रहे हैं सारे बेतहाशा 
पर इन सभी ने क्या 
मार्ग सही चुना था ?
इस अथक परिश्रम से क्या 
भला किसी का हुआ था ?

अच्छा तो ये है जटिल समस्या!
तुम्हारा चिंतन ही बन गया 
तुम्हारे कर्म पथ की बाधा !

सुनो सोचते रहने से भी क्या होगा ?
घर की बिजली का बिल ही बढेगा !
करवट बदल-बदल कर बिस्तर पर
ना किसी बिल का भुगतान होगा,
ना ही किसी का कल्याण होगा !

कुछ ना करने से और तार उलझेगा ।
दम तोङेंगे सुर, राग बिखर जाएगा ।
कुछ करने से ही जीवन क्रम सुधरेगा ।
जो ग़लत राह चुनते हैं, उन्हें जाने दो ।
तुम अपने जीवन को तो सही दिशा दो ।

बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

सूर्यास्त के बाद

शाम ढले देखा,
सामने की छत पर 
पहने नारंगी जामा
टहल रहा था सूरज,
अब तक ढला न था ।

असमंजस में था ।
मन में सोच रहा था
आज अगर छत पर
सो जाऊं मैं चुपचाप ?
देखूँ कैसे दिखते हैं तारे 
दूर गगन में झिलमिलाते ।
कैसा लगता है चंद्रमा ?
नभ के भाल पर चमकता ।
और चांदनी का उजियारा ।

इतने में कोई वहां रख गया
इक लालटेन और बस्ता ।
जला कर पढ़ने लगा बच्चा ।
सूरज फिर सोच में पङ गया ।

सूर्यास्त के पश्चात जगत सारा
करता है विश्राम थका-हारा ।
अथवा निपटाता बाकी के काम,
मन में लिए भोर होने की आशा ।
सबके जिम्मे अपना-अपना काम ।
बोरिया-बिस्तर अपना बांध तत्काल 
करना होगा मुझे अविलंब प्रयाण ।
समस्त सृष्टि को है जिसकी प्रतीक्षा 
समय पर वह सूर्योदय अवश्य होगा ।

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

जन गण मन प्रतिबद्ध

जन्मभूमि के लिए 
जो जिये और मरे,
उनका अनुकरण 
कर पाएं हम ..
साहस का उनके 
कर वरण,
नित करें स्मरण 
और वंदन ।

शहीदों और वीरों के
बलिदान का हर क्षण,
अमिट छाप छोङे
जन मानस पर ।

जो न्योछावर हुए 
देश की माटी पर,
उन पर न्योछावर 
देश की धङकन ।

श्वास श्वास कृतज्ञ
शत शत नमन,
सदा सेवा में सजग
सज्ज रहें जन गण मन ।


रविवार, 24 जनवरी 2021

निरे बांस की बांसुरी

सब कुछ 
छिन जाने के बाद भी 
कुछ बचा रहता है ।

सब समाप्त 
होने के बाद भी 
शेष रहता है जीवन, 
कहीं न कहीं ।

सब कुछ 
हार जाने के बाद भी, 
बनी रहती है 
विजय की कामना ।

फिर तुम्हें क्यों लगता है,
कि तुममें कुछ नहीं बचा ?
न कोई इच्छा, 
न कोई भावना ?
न ही तुम्हारी कोई उपयोगिता  ..

अरे! इस सृष्टि में तो,
ठूंठ भी 
बेकार नहीं जाता ।

टटोलो अपने भीतर ।
संभाल कर,
और बताओ क्या 
कुछ नहीं मिला  ?

क्या कहा  ?
बस ढांचा ?
अंदर से खोखला ..
तो क्या  ?

खोखला बांस भी, 
तमाम छिद्रान्वेषण के बावजूद, 
केशव के प्राण फूंकने पर,
बांसुरी बन जाता है ।

फिर तुम तो मनुष्य हो ।
जो बन सके, वो करो ।
चरणों की रज ही बनो,
जो न बन सको ..
गिरिधारी की बांसुरी ।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

संदर्भ जीवन का


इस मिथ्या जगत में 
एक सच्ची अनुभूति की
आस है मुझे, इसलिए 
हर करवट में दुनिया की
दिलचस्पी है मेरी ।

इतने शानदार खेल-तमाशे 
चप्पे-चप्पे पर जिसने सजाए,
वो जो हो हमारे-तुम्हारे लिए,
नीरस तो नहीं होगा ।

कुछ तो होगा ऐसा,
जिसके लिए जी-जान लगा के
मेंहदी की तरह रचता गया ..
रचता गया संसार चक्रव्यूह जैसा,
किसके लिए  ?
अभिमन्यु के लिए  ??
छल और बल की क्षुद्र विभीषिका 
डिगा ना पाई जिसकी सत्यनिष्ठा ।

इसीलिए मैंने कहा ना ।
इस विलक्षण अनुभूति का
मुझे भी है स्वाद चखना ।

सबके जीवन में घटती है एक लोककथा ।
हर पङाव पर मिलती है कोई संभावना ।
भ्रम को भेदने वाला कोई तो बाण होगा ।
अभिमन्यु छला गया पर परास्त ना हुआ । 
उसके प्राणों में जिस स्वर ने अलख जगाया
निर्भय चेतना का ... कभी तो भान होगा
मनमोहन की बाँसुरी के उस सम्मोहन का ।