गुरुवार, 11 जून 2020

अंतर्कथा

तिरेपन तुरपनों के बाद
बार-बार उधड़ी सिलाइयों की,
तिरेपन पैबंद जोड़ने के बाद,
रंग कुछ फीके पड़ने के बाद,
जैसा भी है कथा ताना-बाना,
कुल मिला कर बुरा नहीं रहा,
हिसाब-किताब लेन-देन का,
बही खाते में जो दर्ज हुआ ।
जुलाहे ने जतन से जो बुना था ।
साधारण पर कच्चा नहीं था धागा ।
धागों और बुनावट की सुघड़ कला
सीखते-समझते समय सरस बीता
तिरेपन धागों की तिहत्तर तुकबंदियां
तमाम किस्सा बिल्कुल वैसा ही था
जैसा और जितना हमसे बन पड़ा ।
अब आगे बढ़ती है धागों की अंतर्कथा ।



शुक्रवार, 5 जून 2020

खुश रहिए

खुश रहने को 
कौन बहुत सामान चाहिए !
सुबह जल्दी आँख खुली
खुश हो गए !
एक नई चिड़िया देखी
खुश हो गए !
बड़े दिनों में चिट्ठी आई 
खुश हो गए !
आज चहेती सखी मिली
खुश हो गए !
गमले में इक कली खिली
खुश हो गए !
नल में पानी देर तक आया
खुश हो गए !
मुश्किल सवाल हल हो गए
खुश हो गए !
अच्छा-सा इक गीत सुना
खुश हो गए !
नानी ने नई कहानी कही
खुश हो गए !
बाबूजी ने शाबाशी दी
खुश हो गए !
माँ की गोद में सो गए
खुश हो गए !

छोटी-छोटी खुशियाँ
चाबी भर देती हैं,
मन तो एक खिलौना है
झट चल देता है !
चलते-चलते मिलती है,
कोई राह नई !
खुशियों की
कड़ियाँ जुड़ती हैं ।
लहर लहर से
एक नदी बन जाती है ।
बड़ी खुशी पाने के लिए
खुश रहना आना चाहिए ।
वर्ना खुश होने को 
कौन बहुत सामान चाहिए !

सोमवार, 1 जून 2020

जड़ें

एक पेड़ का 
धराशायी होना,
टूट कर गिरना,
हतप्रभ कर देता है ।
एक सदमे की तरह
आघात करता है ।
कुछ तोड़ देता है
अपने भीतर ।

एक पेड़ को
ठूंठ बनते देखा
तो लगा,
क्या फ़र्क है,
पेड़ के सूखने
और भावनाओं के
जड़ हो जाने में ?

इसीलिए जब
ठूंठ भी ना रहा,
हृदय की तरल
अनुभूति भी
जाती रही ।

जड़ों के बिना कोई
जी पाता नहीं ।
टिक पाता नहीं ।
पेड़ हो या आदमी ।

सोमवार, 18 मई 2020

दिलो-दिमाग़


जा रहे हो
तुम अपने रास्ते
किसी काम से ।

तभी देखा
रास्ते के किनारे
कोई बेचारा
चोट खाया 
पड़ा हुआ था ।
कोई ना मदद को
आगे आ रहा था ।

दिल बोला
हाथ बढ़ा ।
कर सहायता
अस्पताल पहुँचा ।

दिमाग़ बोला,
क्या फ़ायदा ।
ये ना बचेगा ।
उल्टा तू फँसेगा ।

दिल फिर बोला,
बहाने न बना !
कोशिश तो कर जा
जान बचा !

दिमाग़ फिर अड़ा
कोई न कोई तो
पहुँचा ही देगा ।
तू चल ना !

किसकी सुनोगे भैया ?
कैसे लोगे फ़ैसला ?

सोचने का समय
लिए बिना,
दिल जो पहली दफ़ा
रास्ता बताता है,
सही बताता है ।

रास्ता पार कैसे होगा ?
ये तिकड़म लगाना
दिमाग़ को
बेहतर आता है ।

किसी बात को,
किसी काम को 
हाँ कहना है या 
ना कहना,
ये फ़ैसला लेना
दिल से ।

पर काम को
कैसे करना है, 
ये तय करना
दिमाग़ से ।

दिल की सुनना ।
दिमाग़ से काम लेना ।

शुक्रवार, 8 मई 2020

अंतरंग

ध्वस्त मनःस्थिति
कोई राह सूझती न थी
सन्नाटा पसरा था
बाहर और भीतर
शब्द-शून्य क्षण था
पत्ता भी हिलता न था 
अव्यक्त असह्य पीड़ा का
बादल घुमड़ रहा था ।

इतने में सहसा 
दूर कहीं टिमटिमाया
जुगनू सा
आरती का दिया
और सुनाई दी
घंटी की धीमी ध्वनि ।

भीतर कुछ पिघल गया
एक आंसू ढुलक गया ।
कोई तार जुड़ गया ।
कोई ना था पर लगा
कोई सुन रहा था
समझ रहा था
साथ था सदा।

मंगलवार, 5 मई 2020

सारी लड़ाई


सारी रस्साकशी !
सारी खींचतान !
सारी लड़ाई ..
मुल्कों के बीच ..
संप्रदायों के बीच..
समुदायों के बीच ..
परिवारों के बीच ..
लोगों के बीच ..
रिश्तों के बीच..
अधिकार की नहीं..
न्याय की नहीं ..
सामंजस्य की नहीं..
विरोधाभास की नहीं ..
विचारधारा की नहीं ..
टकराव की नहीं..
पैसे की नहीं ..
सत्ता की भी नहीं ..
आदमी की बसाई
इस बेहतरीन दुनिया की
सारी लड़ाई,
मानसिकता की ..
थी, है और होती रहेगी ।

शनिवार, 2 मई 2020

कविता क्या खाक !


वाह भई वाह !
क्या खूब !
क्या कहने !
छा गए !

बहुत कामयाब रहा !
कवि सम्मेलन तुम्हारा !
लोगों ने बहुत सराहा !
खूब तालियां बजी !
चहुं दिक चर्चा हुई !

पर एक बात बताओ भई !
कब से माथे को मथ रही !

तुमने बात बड़ी अच्छी कही !
पर आचरण में दिखी नहीं !

कविता अगर जी नहीं
तो क्या खाक लिखी !